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91.15.41
महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु
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भो देवयत्त दुक्करु विसति । एयहु दंसणि' कायर मरति । तं णिसुणिवि विहसिवि तेत्यु तेण महुमहणरायरुप्पिणिसुएण। अप्पउ घल्लिज' सहस त्ति केम सीयलचंदणचिक्खिल्लि जेम। पुजिउ देवीइ महामाउं . आगाह शिव पुणु सोमकाउ' । सोमेसमहीहरमझि' णिहिट कूरेहिं तेहिं चउदिसहि पिहिउ। वीरेण तेण संमुह भिडत
थहरूब" धरिय गिरिवर पडत। पुणु जक्खिणीइ जगसारएहिं पुजिउ वत्थालंकारएहि। साहसियह तिहुयणु होइ सम्झ दुग्गु वि अदुग्गु दुग्गेज्झु" गेज्झु। घत्ता-सयलेहिं मिलेवि वइरिहिं करिकरदीहरभुज । सूयरगिरिरंधि पुणु पइसारिउ कण्हसुउ ॥14॥
(15) तहि महिहरु धाइउ' होवि कोलु धुरुधुरणरावकयघोररालु। दाढाकरालु देहणिविलित्तु णीलालिकसणु रत्तंतणेत्तु । अरिदंतिदंतणिहसणसहेहि
भुयदंडहि चूरियरिउरहेहिं। मोडिउ रहसुब्भडु खरु अमठु वइकंठहु पुत्तें कंठकंछु।
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को आज्ञा से प्रेरित शत्रुओं ने उसे दिखाते हुए कहा-“हे देवदत्त ! इसमें प्रवेश करना कठिन है। इसके दर्शन मात्र से कायर नष्ट हो जाते हैं।" यह सुनकर राजा कृष्ण और रुक्मणी के पुत्र ने हँसकर अपने को उस अग्निकुण्ड में इस प्रकार डाल दिया, जैसे वह शीतल चन्दन की कीचड़ हो। देवी ने उस महानुभाव की पूजा की। दूसरों ने पुनः जाकर सौम्यशरीर उसे सोमेश महीधर के भीतर रख दिया और उन दुष्टों ने चारों ओर से उसे ढक दिया। उस वीर ने सामने भिड़ते हुए छाग (मेष) के आकारवाले गिरते हुए पहाड़ों को रोक लिया। फिर यक्षिणी ने विश्व में श्रेष्ठ वस्त्रालंकारों से कुमार की पूजा की। साहसी व्यक्तियों के लिए त्रिभुवन साध्य होता है। उन्हें अदुर्ग भी दुर्ग, दुर्ग्राह्य भी ग्राह्य हो जाता है।
पत्ता-समस्त शत्रुओं से मिलकर हाथी की सूड के समान भुजाओंवाले कृष्णपुत्र कुमार को वराह पर्वत की गुफा में फिर से घुसा दिया।
(13) यहाँ घुर-घुर शब्द से भयंकर आवाज करता हुआ महीधर वराह बनकर दौड़ा जो दाढ़ों से भयंकर कीचड़ से सनी देहवाला, भौंरों के समान काला और लाल-लाल आँखोंवाला था। तब शत्रुगजों के दाँतों के संघर्षण
4.P दरिसगे। 5. A वित्त । 6. H"चिक्खिल्लु : चिक्खेल्नु। 7. APN सोम्मकाउ। 8. S"महीहरे। 9, P"दिसिहि। 10.A बहस्य। ।। Pसुदगेग्छ । 12. APS दीरभुउ।
(15) 1.A याविड। 2. P होह। 3. B'योरु। 4. A देहिणि": । देहिण। 5. B रत्तत्त । 6. A"सएटिं। 7. B "इंडिहिं। 8. ABPS रोसुम्भड़। 9. ABPS बडकुंडो।