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महाकइपुष्फयतविरयड महापुराणु
[91.13.1
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(13) तक्खयसिल णामें तुज्झु माय महुं कामसत्तहि देहि वाय। तं वयणु सुणिवि मउलंतणयणु अवहेर' करेप्पिणु गयउ मयणु। 'ला चिट्ठ पु दुभारंगे
णियणहहिं वियारिवि णिययदेहु। आरुट्ठ सुठु' णिछर हयास | अक्खइ णियइयह जायरोस । तुहुं देव डिंभकरुणाइ भुत्तु परजणिउ होइ किं कहिं मि पुत्तु। कामंधु पाणिपल्लवि विलग्गु जोयहि णहदारिउ महुँ थणग्गु । तं णिसुणिवि राएं कुद्धएण जलणेण व जालारिद्धएण'। भीसणपिसुणहं मारणमणाहं आएसु दिण्णु णियणंदणाह। णिल्लज्ज अज्जु दायज्ज' महहु' पच्छण्णउं एसु वहाइ बहु । तणयहं जयगहणुक्कठियाइं ता पंच सयाई समुट्लियाई। घत्ता-प्रियवयणु" भणेवि सिरिरमणंगउ साहसिउ।
णिउ रण्णहु तेहिं सो कुमार' कीलारसिउ ।।।3।।
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णं पलयकालजमदूयतुडु' णियजणणसुपेसणपेरिएहिं
तहिं हुयवहजालाजलियकुंडु । दक्खालिवि बोल्लिउं वइरिएहि ।
नाम से तक्षशिला तुम्हारी माँ है। मुझ कामपीड़ित से तुम बात करो।" यह सुनकर अपनी आँखें बन्द कर, उपेक्षा कर कामदेव प्रद्युम्न चला गया। तब दुर्भावों की घर, ढीठ, दुष्ट वह अपने नखों से अपने शरीर को विदारित कर, रुष्ट, हताश, निष्ठुर एवं क्रुद्ध होकर अपने पति से कहती है- "हे देव ! बालक की करुणा तुम्हें खा गयी। दूसरे के द्वारा उत्पन्न हुआ क्या कभी पुत्र हो सकता है ? वह कामान्ध पाणिपल्लव से आ लगा, देखो वह नख से विदारित मेरा स्तनाग्र भाग।" यह सुनकर ज्वालाओं से समृद्ध आग के समान, क्रुद्ध राजा ने अत्यन्त भीषण, कठोर, मारने की इच्छा रखनेवाले अपने पुत्रों को आदेश दिया कि आज निर्लज्ज इस सौतपुत्र को मथ डालो। प्रच्छन्न इसका वध कर डालो। जय पाने की इच्छा रखनेवाले उसके पाँच सौ पुत्र उठे।
धत्ता-वे लोग प्रिय वचन कहकर, साहसी और क्रीड़ा-रसिक पुत्र को जंगल में ले गये।
वहाँ अग्निज्वालाओं से प्रज्वलित कुण्ड था जो मानो प्रलयकाल के यमदूत का मुख हो। अपने पिता
(13) I. AP कामाउरोह पदेहि ।। कामाऊरहि। 2. ARS अवहेरि। 3. सुट्ट14. Bपनाय । S.APरुद्धएण। .PS दाइला .AP पहह । B.A पमुबहाइ। 9. AP यहा! 10. BP णिय | 11. B कुमार।
(14)1. PS तोंड़। 2. PS जलिल । 2. P"कुंछ: 5 कोड। 3. APS बेरिहें।