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91.12.30]
महाकइपुष्फयंतविरवर महापुराणु
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ण पहाणं ण खाणं
पाणं दाणं। ण भूसाविहाणं
ण एयत्यठाणं। ण कीलाविणोयं
ण भुजेइ भोयं। सरीरे घुलती
जलद्दा जलती। णवंभोयमाला
सिहिस्सेय जाला। ण तीए सुहिल्ली
मणे कामभल्ली। णिरुत्तण्णमण्णा
जरालुत्तसण्णा। विमोत्तूण संके
सगोत्तस्स पंक। पकाउं पउत्ता
सरुत्तत्तगत्ता'। सपेम्म थवंती
पएK णमंती। पहासेइ एवं
सुयं कामएवं । अहो सच्छभावा
मई इच्छा देवा। तओ तेण उत्तं
अहो हो अजुत्तं। विइण्णगछाया
तुम मज्झु माया। थणंगाउ धणं
गलतं पसण्णं। मए तुज्झ पीयं
म जंपेहि बीयं। असुद्धं अबुद्धं
बुहाणं विरुद्धं। घता-ता ससिवयणइ" जंपिउं जंपहि गेहचुउ ।
तुहं काणणि लद्ध णंदणु णउ मह देहहुउ" ॥12॥ नहीं नचाती है। प्रभा से भास्वर लीलापूर्वक विचरण करते हुए हंस को भी वह नहीं मानती, न वीणा को
और न बाँसुरी को। न स्नान, न भोजन, और दान-पान, न वेशभूषा का विधान और इसके लिए स्थान चाहती है। न क्रीडा-विनोद करती, और न मोगों को भोगती। शरीर में घुलती हुई, जल से आर्द्र होने पर भी जलती हुई, आग से झुलसी हुई उसे नव मेघमाला अच्छी नहीं लगती। उसके मन में काम की मल्लिका (छोटी माला) है। निश्चय से वह अन्यमनस्क एवं विरहज्वर से लुप्त चेतनावाली है। अपने गोत्र की शंका और कलंक को छोड़कर, पकी हुई आयु को प्राप्त, कामदेव से संतप्त शरीर, प्रेमपूर्वक स्तुति करती हुई, पैरों में पड़ती हुई वह कामदेवपुत्र से इस प्रकार कहती है-“हे स्वच्छभाववाले देव ! मुझे चाहो।" तब उसने कहा- "अहो यह अयुक्त है। शरीर को कान्ति देनेवाली तुम मेरी माँ हो। तुम्हारे स्तनांग से झरते हुए दूध को मैंने पिया है, तुम अन्यथा बात मत करो जो अशुद्ध, मूर्ख तथा पण्डितों के लिए विरुद्ध हो।" ___घत्ता-इस पर वह चन्द्रमुखी कहती है-“तुम स्नेहहीन बात करते हो, तुम जंगल में मिले हुए मेरे पुत्र हो, तुम मेरे शरीर से उत्पन्न नहीं हुए।
5. 5 पाणेइ । 6. A लिहिस्सेबजाला, णबंधोयमाला। 7. P मरुत्तत्त । 8. AP सुपेम्म। 9. BS णवंती। 10.8 इच्छि। 11.Aणगाण यण: As थणग्गाउ धणं अwainst Mss. 12. PS ससिबचणाए। 13. 5 देहे हुओ।