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91.11.8]
महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु
तं णिसुणिवि 'रूपिणिहरिहि हरिसु एतहि वि कुमारें हयमलेण अपि णियतायहु णीससंतु कंचणमालहि कामगिजाल
संजायत हरिसंसुयई' वरिसु । रणि अग्गिराउ संधिवि बलेण । अवलोइवि णंदणु गुणमहंतु । उडिय हियउल्लइ णिरु कराल । मायइ विरहविसंकुलई । की कि गरिथ मेइणियलइ ॥ 10 ॥
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पत्ता - अहिलसिउ सपुत्तु काडु चल
पंगणि' रंगंतु विसालणेत्तु
जं थणचूवई' लाइउ रुवतु जं जोइउ णयहिं वियसिएहिं तं एवहि पेमुग्गयरसेण पुत्तु जि पइभावें लइउ ताइ हक्कारिवि दरिसिउ पेम्मभाउ मई इच्छहि लइ पण्णत्त विज्ज तं णिसुणिवि भासिउं तेण सामु
जं उच्चाइउ धूलीविलित्तु । जं कलखु परियंदिउ सुयंतु' । जं बोल्लविउ पियजपिएहिं । वीसरिय सव् वम्महवसेण । संताविय मणरुहसिडिसिहाइ । तुहुं होहि देव खयराहिराउ । णिव्यूढमाण माणवमणोज्ज । करपल्लव ढोइउं पाणिपोमु ।
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के रूप में बरस गया । यहाँ पर पवित्र कुमार ने अग्निराज को युद्ध में बलपूर्वक बाँधकर और सिसकते हुए उसे अपने पिता के लिए सौंप दिया। गुणों से महान् अपने पुत्र को देखकर कंचनमाला के हृदय में भयंकर कामज्वाला उठी ।
घत्ता - विरह से अस्त-व्यस्त माँ अपने ही पुत्र को चाहने लगी। इस धरतीतल पर कामदेव से बलवान् दूसरा कोई नहीं है ।
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आँगन में चलते हुए जिस विशालनेत्र धूलधूसरित बालक को गोद में उठाया, रोते हुए जिसे अपने स्तन के अग्रभाग से लगाया, खिली हुईं आँखों से जिसे देखा गया, सोते हुए जिसे सुन्दर लोरियाँ सुनायीं, इस समय वह प्रेम के उद्भव रस और कामदेव के वशीभूत होकर सब कुछ भूल गयी। उसने पुत्र को भी पतिभाव से लिया । वह कामदेव की अग्नि की ज्वाला से सन्तप्त हो उठी। बुलाकर उसने कुमार को प्रेमभाव दिखाया और कहा - "हे देव! तुम विद्याधर राजा बन जाओ। मान का निर्वाह करनेवाले हे मानव सुन्दर ! मुझसे प्रेम करो और यह प्रज्ञप्ति विद्या लो।" यह सुनकर उसने श्यामा से बात की और उसके करतल में अपना करकमल दे दिया, तथा हृदय के ऊपर के वस्त्र से अपने स्तन को प्रकट करनेवाली उसके द्वारा दी गयी
h, ABPS] रूपिणि । A सुययरिसुः Als. "सुयपयरितु against Mss. 8. S सुपुत्तु । 9 APS मयणविसकुलए: B records Ap: मण इति वा पाठः । ( 11 ) 1. AP अंगणं । 2 A वणजुयहे R वणजुवल PS यणचूयहे। 3. APIS रुयंतु 1. P कलर 5. B अयंतु। 6. P जीयउ 7. B जं पिबबएहिं ।
A AP वीसरिज 5 विसरिय। 9. S हक्कारवि दरसि ।