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________________ 91.9.2] महाकइपुष्फयंतविरयर महापुराणु [215 अवलोइउ बालउ कर घिवंतु छुडु छुडु उग्गउ णं रवि तवंतु। बोल्लिउ पहुणा लायण्णजुत्तु | लइ लइ सुंदरि तुह होउ पुत्तु । बालउ लक्खणलखंकियंगु रूवें णिच्छउ होसइ अणंगु। ता ताई लइउ सुउ ललियबाहु णं णियदेहह मयणग्गिडाह। वरतणयलंभहरिसियमणाइ पुणु पत्थिउ णियपिययमु अणाइ। परमेसर जइ मई करहि कज्जु तो तुह परोक्खि एयहु जि रज्जु । जिह होइ देव तिह देहि वाय रक्खिज्जउ महु सोहग्गछाय। तं णिसुणिवि पहुणा विप्फुरंतु उव्वेल्लिवि कंतहि कणयवत्तु। बद्धउ पुत्तहु जुवरायपटु पुलएं जणणिहि कंचुउ विसटु। पत्ता-णिवणयरु गयाई पुण्णपहावपहारियई। शंदणलाहेण बिणि वि हरिसाऊरियइं ॥8॥ मंदिरि मिलियई सजणसयाइं काणीणहुँ दीगहुं दिण्णु दाणु णाणामंगलतुरई हयाई। पूरियदिहि' अइइच्छापमाणु। अपने हाथों को बढ़ाते हुए उसने बालक को देखा, मानो अभी-अभी ऊगा हुआ सूर्य आलोकित हो। राजा ने कहा- "हे सुन्दरी ! लावण्य से युक्त इसे ले लो। यह तुम्हारा पुत्र होगा। यह बालक लाखों लक्षणों से सहित है। रूप में निश्चित ही यह कामदेव होगा।" तब उसने सुन्दर बाँहोंवाले उस पुत्र को ले लिया, मानो बह जैसे अपने शरीर की मदनाग्नि की जलन हो। उत्तम पुत्र को पाने के कारण हर्षितमन उस रानी ने फिर अपने स्वामी से प्रार्थना की-“हे स्वामी ! यदि आप मेरी बात मानें तो आपके परोक्ष में राज्य जिस प्रकार इसका हो सके, उस प्रकार का वचन मुझे दीजिए और मेरी सौभाग्य छाया की रक्षा कीजिए।" यह सुनकर राजा ने चमकता हुआ कनकपत्र निकालकर पुत्र को युवराजपट्ट बाँध दिया। रोमांच से माता का कंचुक वस्त्र फट गया। पत्ता-पुण्य प्रभाव की प्रभा से परिपूर्ण और पुत्र मिल जाने के कारण हर्ष से भरे हुए वे दोनों अपने नगर चले गये। (9) महल में पहुंचने पर सैकड़ों सज्जन उससे मिले। नाना मंगल तूर्य बजाये गये। व्यासों और दीनों को (8) 1. 5 देवि याच। (9)1. PS दिपण। 2. AP पूरिथदिहियई।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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