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[91.6.13
महाकहपुष्फयंतविरयउ महापुराणु घत्ता-कणवरहु मरिवि जायउ भीसणवइरवसु ।
पहि जंतु विमाणु खलिउं कुइउस जोइसतियसु ॥6॥
थक्कइ बिमाणि सो' भिण्णकेउ आरूढई गज्जई धूमकेउ। चिरु जम्मतरि सिसुहरिणणेत्तु अवहरिउ जेण मेरउं कलत्तु । सो जायउ अज्जु जि एत्यु वेरि मरु मारमि खलु णिज्बूढखेरि। घल्लमि काणणि अविवेयभाउ' दुई अणुहंजिवि जिह मरइ पाउ। गयणयललग्गतालीतमालि
इय मंतिवि खयरवणंतरालि। परियणु मोहेप्पिणु सयलणयरि सिसु घल्लिज तपखयसिलहि उरि'। पुरि बहिउ' सोउ महायणाहं हलहररुप्पिणिणारायणाह। ता विउलि सेलि वेयडणामि अमयवइदेसि विस्थिण्णगामि। दाहिणसेढिहि घणकूडणयरि णहसायरि" विलसियचिंधमयरि । तहि कालि कालसंवरु'' खगिंदु गणियारिविहूसिउ णं गइंदु। धत्ता-सविमाणारूद कंचणमालइ समउं तहिं।
संपत्तउ राउ अच्छइ महुमहडिंभु जहि ॥7॥
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पत्ता-भीषण बैर के वशीभूत होकर कनकरथ ज्योतिष देव हुआ और आकाश में जाते हुए उसका विमान रुक गया। वह कुपित हो उठा।
विमान रुक जाने पर, उस पर आरूढ़ विद्धध्वज धूमकेतु गरजता है-“पिछले जन्म में जिसने मृगशावक के नेत्रोंवाली मेरी स्त्री का अपहरण किया था, वह शत्रु आज यहाँ उत्पन्न हुआ है। बढ़ते हुए द्वेषवाले उसको, लो, मैं मारता हूँ। उस विवेकशून्य को जंगल में फेंक देता हूँ, जिससे वह पापी दुःख का अनुभव करके मर जाए।" ऐसा विचार कर उस खेचर (विद्याधर) ने वन के अन्तराल में सम्पूर्ण नगरी और परिजनों को सम्मोहित कर उस शिशु को, आकाशतल से जा लगे हैं ताड़ और तमाल वृक्ष जिसमें ऐसी तक्षशिला पर पटक दिया। नगर में बलभद्र, नारायण और रुक्मणी आदि महाजनों में शोक छा (बढ़) गया। इसी समय विजयार्घ नगर के उस विशाल पर्वत पर विस्तीर्ण गाँवोंवाले अमृतवती देश में दक्षिण श्रेणी के मेघकूट नगर में, जो ऐसा लगता था कि शोभित चिह्न रूपी नगरोंवाला नभसागर हो, उसमें कालसंवर नरेश था। वह ऐसा था जैसे हथिनी से विभूषित हाथी हो।
घत्ता-कंचनमाला सहित अपने विमान में आरूढ़ वह देव वहाँ आया, जहाँ कृष्ण का पुत्र प्रद्युम्न था।
[5. ABPS भीसा । 16. A कुयत्र ।
(7) 1. A सीहिसकेउ। 2. AP आरुहर। १. 5 मारेमि। 1. भावु। .. 5 मरण पावु। . $ घतिय। 7. B उअरि; Pउपरि। 8. B बति।। 9.8"रूपिणि । 10. । विजल TIH. APS णहसायर । 12. D कालसंभत्।