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महाकइपुष्फयंतावेरवळ महापुराणु
बोहियाई बिणि वि जणाई मुउ कायजंघु काववयविहीसु परिपालियणिय कुलहरकमेण अग्गलसुणी व सिरिमइहि धीय पत्ता- आसीणणिवासु अग्घोसियमंगलवहु ।। णवजोव्वणि जंति बाल सयंवरमंडबहु" । 14 ।।
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पइणाम पडिवज्जिबि पारिदेह सुणहत्तणु तं वज्जरि ताहि तं णिसुणिवि सा संजयमणाहि ' त करिवि मरिवि सोहम्मि जाय ते भायर सावयवय' धरेवि तत्थेव य वियलियमलविलेव वोली देह समुहकालि गयउरि णिउ गायें अरुहदासु महु कीडय णामें ताहि" लणय
उवसंत जिणपयगयमणाई | संजायउ गंदीसरि णिहीसु । संजणिय णिवेणारिंदमेण । सुइ सुप्पबद्ध णामें विणीय ।
मायंगजम्मु बहुपावबेहु ।
हलि अग्गिलि किं रइ तुह विवाहि । पावइय पासि पियदरिसणाहि । मणिचूल णाम सुरवइहि जाय । ते पुण्णमाणिभद्दक बे वि जाया मणहर सावण्णदेव' | हुय" कुरुजंगलरेताल कासव पिययम वल्लहिय तासु । ते जाया गुणगणजाणिवपणय ।
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किया। उनका मन शान्त होकर जिनचरणों में लग गया। व्रत की विधि का पालन करनेवाला कागजंघा मर कर नन्दीश्वर में यक्ष हो गया। अपने कुलगृह कर्म का पालन करनेवाले राजा अरिदमन ने भी अग्निला कुतिया को श्रीमती की पुत्री के रूप में, पवित्र सुप्रबुद्धा विनीता नाम से उत्पन्न किया।
धत्ता - जिसमें मंगल बर बुलाये गये हैं, ऐसे विवाह के मण्डप में जिसमें राजा लोग बैठे हैं, उस नवयौवना बाला के जाने पर,
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पति ( पूर्वभव का सोमदेव, अब यक्ष) ने मना करने के लिए वह नारी शरीर, अनेक पापों का घर चाण्डाल जन्म, वह कुतियापन, उसे बताया और बोला- “हला अग्निले क्या फिर से तुम्हारी विवाह में रति है ?" यह सुनकर वह संयम मनवाली प्रियदर्शना आर्थिका के पास प्रव्रजित हो गयी। तप कर और मरकर वह सीधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुई और मणिचूल नामक देव का देवी हो गयी। वे दोनों भाई पूर्णभद्र और मणिभद्र मी श्रावक व्रत ग्रहण कर वहीं पर मलविलेप से रहित होकर सुन्दर सामानिक देव हुए। एक सागर पर्यन्त समय बीतने पर और शरीर के च्युत होने पर कुरुजांगल देश के गजपुर में अरुहदास नाम का राजा था। उसकी प्रियतम पत्नी काश्यपी थी। वे दोनों उसके मधु और क्रोइक नाम के पुत्र हुए जो अपने गुणगण से नम्रता प्रकट करनेवाल थे।
b. A मंदीरार | 7. B कूलरणिय H. A आसीणवरामु । 9 [ "मंडहो ।
( 5 ) 1. P संयम' 2. AP सावयव चरेवि 3. R जे 4. P साम 5. A बोलीणदेहि दुतमुद्द° 6. P ग्रुप 1 7 AB जंगलि | 8 A गयउरि णामे गिन अरुहासु 9 A तारे।