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महाकदपुष्फयंतावरयउ महापुराणु
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"गय साहमहु कयतुरंभाई नुसाई पंच पलिओवमाई। पुणु सिहरासियकीलंतखयरि इह दीचि भरहि साकेयणयरि। गारणाहु अरिंजउ वइरितासु" वणि वणिउलपुंगमु अरुहदासु । चप्पसिरि घरिणि सुउ पुण्णभदु अण्णेक्कु वि जायउ माणिभदु । घत्ता-सिद्धस्थवणंतु" सहुँ राए जाइवि वरई।
गुरु णविवि महिंदु आचण्णिवि धम्मक्खरई ॥3॥
णियलच्छि विइण्ण' अरिंदमासु सिरसिहरचाचियणियभुएहि चिरभवमावापियराइं जाई रिसि भणइ बद्धमिच्छत्तराउ रयणप्पहसप्पावत्तविवरि अणुहजिवि तह- बहुदुक्खसंधु कुलग, पडियउ पावयम्मु तहु मंदिरि तुम्हहुँ विहिं मि माय अग्गिलबंभणि तं सुणिवि तेहिं
पावइयउ जावउ अरुहदासु। पुणु मुणि पुच्छिउ वणिवरसुएहिं। जायाई भडारा केत्यु ताई। जिणधम्मविरोहउ तुज्झु ताउ। हुउ णरइ णारयाढत्तसमरि। मायंगु पहूयउ कायजघु। सो सोमदेउ संपुण्णछम्मु। सा सारमेय' हूई बराय। तहिं जाइवि' मउवयणामएहिं।
का यहाँ उपभोग किया। अनन्तर, इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, जिसके शिखरों पर पक्षी क्रीड़ा करते हैं ऐसे साकेत नगर में, शत्रुओं को सन्ताप देनेवाला अरिंजय नाम का राजा तथा वणिक कुल में श्रेष्ठ अरुहदास नाम का वणिक् था। उसकी पत्नी वप्रश्री थी। उसका एक पूर्णभद्र पुत्र हुआ और दूसरा मणिभद्र हुआ।
पत्ता-सिद्धार्थ वन में राजा के साथ जाकर, महेन्द्र गुरु को नमस्कार कर तथा उत्तम धर्माक्षर (प्रवचन) सुनकर --
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___ अरिंजय और अरुहदास अपनी लक्ष्मी वितरित कर प्रद्रजित हो गये। सिर रूपी शिखर पर अपने दोनों हाथ चढ़ाते हुए दोनों वणिपुत्रों ने मुनि से पूछा- “जो हमारे पूर्वभव के माता-पिता थे, आदरणीय वे कहाँ जन्मे ?'' मुनि कहते हैं- "मिथ्यात्व के राग को बाँधनेवाले और जिनधर्म के विरोधी तुम्हारे पिता रत्नप्रभा नरक के सावर्त बिल में उत्पन्न हुए हैं, जहाँ नारकियों के द्वारा युद्ध प्रारम्भ किया जाता है। वहाँ प्रचुर दःख समूह को सहन करने के बाद कागजंघा नामक चाण्डाल हआ। कलगर्व से प्रतारित पापकर्मा वह पूरा पाखण्डी सोमदेव (तुम्हारा पिता), उसी के घर में तुम दोनों की वह माँ बेचारी कुतिया हुई जी अग्निला नाम की ब्राह्मणी थी।" यह सुनकर उन दोनों ने वहीं जाकर अपने मृदु वचनामृत से उन दोनों को सम्बोधित
7. A "सुहरमाई P सुररसाई। 8. 4 बपरि 19. A वणिवरगम । 10. P"वर्णते। 11. आइ विरह। '
(4) 1. B-विदिण्ण12.5 तेहिं । 3. A संपत्तहम्म। 4.AP सारमेह । 5. B जायवि।