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महाकइपुण्फयंतविरयउ महापुराणु
आवाहिउ भीसणु असिपहारु ते विणि वि भिय खग्गहत्य वरदेवपहाव पिपीलियाई अलियउं ण होइ जिणणाहसुत्तु पत्ता - तणुरुहतणुरोहु अवलोइवि
कंत्रणजक्खें किज" दिव्वचारु । गं मट्टियमय" थिय किय गिरत्थ । अडुंगोवंगई खीलिवाई। पावेण पाउ खज्जइ णिरत्तु । उव्वेइयई" ।
मायापियराई जक्खहु सरणु पराइयई । " ||2||
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कंपंति णाई खगय भुयग सोवण्णजक्ख जय सामिसाल ता भाइ देउ पसुजीवहारि हिंसाइ विवज्जिउ सच्चगम्पु ता' करमि सुयंगई मोक्कलाई गहियाई तेहिं पालियदयाई विडिय ते कुगइमहंधयारि अणुहविभीमभवस्यरुएहिं
जंपति' विप्प महिणिवडियंग | रक्खहि अम्हारा बे वि बाल । जइ ण करह" कम्मु' कुजम्मकारि । जइ पडिवज्जह जइगिंदधम्मु । पेक्खहु अज्जु जि सुक्कियफलाई । माचाभावें सावयवयाई । णीसारसारि तंबारवारि । पुणु पालि व दियवरसुएहिं ।
191.2.13
ID APS | 11. BS भायक शिव पर णिरस्थ 12 B उनेइयउ | 19 13 राइड (3)S जप्यंति। 2. AP कर
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हुए उन दुष्टों ने भीषण असिप्रहार किया। उस अवसर पर कांचन यक्ष ने सुन्दर आचरण किया। हाथ में तलवार लिये यक्ष के द्वारा वे दोनों कोल दिये गये। उन्हें इस प्रकार निष्क्रिय कर देने पर वे ऐसे हो गये जैसे मिट्टी के बने हों। बरदेव के प्रभाव से निष्पीड़ित आठों अंगोपांग कील दिये गये। जिननाथ का कथन झूठा नहीं हो सकता। निश्चय ही पाप के द्वारा पाप खाया जाता |
घत्ता - अपने पुत्रों का शरीररोध देखकर माता-पिता बहुत परेशान हुए और वे यक्ष की शरण में पहुँचे ।
रह । 3. A जणु । 4. P कम्मु : ABPS श्री . ABP वरं ।
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गरुड़ से आहत, साँप की तरह काँपते हुए और धरती पर पड़ते हुए वे कहते हैं-- "हे स्वामिन् । श्रेष्ठ कांचन यक्ष ! तुम्हारी जय हो। तुम हमारे दोनों पुत्रों की रक्षा करो।" तब देव कहता है-"यदि ये पशुओं को मारने और कुजन्म को करनेवाला कर्म नहीं करते और हिंसा से रहित सत्यगम्य जैनधर्म स्वीकार करते हैं, तो मैं पुत्रों के अंगों को मुक्त करता हूँ। आज ही तुम सुकृत का फल देखो।" तब उन्होंने, जिसमें दया का पालन है, ऐसे श्रावक व्रतों को कपटभाव स्वीकार कर लिया। वे भी कुगति के अधिकार से युक्त, निःसारता से युक्त लम्वार नरक में जा पड़े। फिर सैकड़ों भयंकर संसार - रोगों का अनुभव करनेवाले उन द्विजवर पुत्रों ने व्रत का पालन किया। वे सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुए, और उन्होंने पाँच पत्य तक देवक्रीड़ाओं