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महाकइपुष्फयंतविरयड महापुराणु णच्चाविज्जइ चित्तायरियएं विविहकसायरायरसभरियएं। इय आयण्णिवि कुवलयणयणहि जय जय जय भणेवि भव्ययणहिं। घत्ता-देवइयइ हरिणा हलहरिण महएविहिं अहिणदिउ ।
सिरिणेमिभडारउ भरहगुरु पुष्फयंतजिणु वंदिउ ॥19॥
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इस महापुराणे तिसद्विमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुष्फपतयिरहए महाभयभरहाणुमणिए महाकव्वे"गोविंदमहादेवीमयावलि
यण्णणं णाम णयदिमो' परिच्छेउ समत्तो ॥9॥
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नट की तरह नृत्य करता रहता है। विचित्र कषायों और राग-रस से भरे हुए चित्तरूपी आचार्य के द्वारा वह नचाया माता है! गह सुरफर मुलाला नेत्रोंबाले भन्यजनों ने जय-जय-जय कहकर
घत्ता-देवकी, श्रीकृष्ण, बलराम और महादेवियों ने उनका अभिनन्दन किया और भरत के गुरु पुष्पदन्त जिन के समान श्री आदरणीय नेमि भट्टारक की वन्दना की।
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प्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारोंवाले इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित वर्णन एवं महाभय्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का गोविन्द-महादेवी-भवावलि
नाम का नव्येयाँ परिच्छेद समाप्त हुआ।
II.PS चित्ताइरिए। 12.P"स्य" । 1. PSगिएं। 11." पुष्पदंतु। 15. S महाराची | [HAS पथावणणं। 17.5 णउदिमो।