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महाकइपुप्फयंताबेरयर महापुरागु
[90.18.11 घत्ता-मुउ जइवरु हुउ सहसारवइ मेहराउ" मेहाणिहि। गोवइखंतिहि पासि कय विमलसिरीइ सुतवविहि ॥18॥
(19) दुवई-अच्छच्छंबिलेण' भुंजती अणवरयं सुरीणिया।
वास' चेव णियदइयह पवरच्छरपहाणिया छ। पुणु अरिट्टपुरि सुरपुरसिरिहरि रयणसिहरणियरंचियमंदिरि। मरुणच्चवियमंदणंदणवणि हिंडिरकोइलकुलकलणीसणि । राउ हिरण्णवम्मु णिम्मलमइ तासु घरिणि वल्लह सिरिमइ सइ। ताहि गब्भि सहसारेंदाणी" सिरिघणरबहु चिराणी राणी। पोमावइ हुई णियपिउपुरि एयइ तुहुं वरिओ सि सयंवरि। कुसुममाल उरि चित्त गुरुक्की ___णं कामें बाणावलि मुक्की। पई मि कण्ह सुललिय गब्भेसरि कय महएवि देवि परमेसरि । जहिं संसारहु आइ ण दीसइ केत्तिउं तहिं जम्मावलि सीसइ। 10 णिव' अण्णण्णहिं भावहिं वच्चइ जीउ" रंगगउ णडु जिह णच्चह।
घत्ता-मेधानिधि मेघघोष मुनिवर मरकर सहस्रार स्वर्ग में इन्द्र हुआ। विमलश्री देवी ने भी गोवई आर्यिका के पास सुतपविधि स्वीकार कर ली।
(19) आचाम्लवर्धन व्रत और उपवास करती हुई, अनवरत रूप से श्रान्त, वह भी अपने उसी पति की प्रवर प्रधान अप्सरा के रूप में उत्पन्न हुई। फिर, जो इन्द्रपुर की शोभा का हरण करती है, जिसमें प्रासाद रत्नशिखरों के समूह से ऑचत है, जिसमें हवा से नन्दनवन धीरे-धीरे आन्दोलित है और भ्रमण करती हुई कोयलों का कलकल शब्द हो रहा है, ऐसे अरिष्टपुर नगर में निर्मलमति हिरण्यवर्मा नाम का राजा था। उसकी प्रिय गृहिणी श्रीमती सती थी। उसके गर्भ से सहस्रार इन्द्र की इन्द्राणी, तथा राजा श्री मेघघोष की पुरानी रानी पद्मावती के रूप में उत्पन्न हुई। इस समय इसके द्वारा स्वयंवर में तुम्हारा वरण किया गया है। तुम्हारे उर में विशाल पुष्पमाला डाली है, मानो काम ने बाणावलि छोड़ी हो। हे सुन्दर कृष्ण ! तुमने भी गर्वेश्वरी परमेश्वरी देवी को महादेवी बना दिया है। जहाँ संसार का आदि नहीं दिखाई देता, वहाँ जन्मावलि के बारे में कितना कहा जाये ? हे राजन् ! यह जीव अन्य-अन्य भाव से जीता है और वह रंगमंच पर गये हुए
11. भंडणार। 12. पोमावर" । 13. D विमलसरीर: 5 विपलसिरिए।
(19) I. A अचलच्छबिलेण। 2. A तस्स देवि शिय: । 5. B हिंडियः। 4. Sणीसरे। 5. P"वामु। 6. सहतारिदाणी। 7. AP णियपिया। 8. P देवि गभर्सर । 1. 5 नृव । 10. HPS जिस रंगगउ ।