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________________ 90.18.101 महाकपष्फयतविरयड महापुराणु [205 मुहमरुविलसियभिंगयसद्दहि णिहउ' गाउं णाहलहिं रउद्दहिं। भवणदविणणासें विद्दाणउ भइयइ लोउ असेसु पलाणउ। घत्ता-गउ काणणु जणु णिरु दुक्खियउ विसवेल्लिहि फलु भक्खइ। अमुणतणामु सा हलियसुय पर तं किं पि ण चक्खइ ||17 ।। ( 18 ) दुवई-मुउ 'णरणियःः सानु वयभंल. खाद विशाल : जीविय पउमदेवि विहुरे वि मणं गरुयाण' णिच्चलं ॥छ। कालें मय गय सा हिमवयह देसहु कप्परुक्खभोयमयहु। पलिओवमु जि तेत्थु जीवेप्पिणु । भोयभूमिमणुयत्तु मुएप्पिणु । दीवि सयपहि देवि सर्यपह सुरहु सर्यपहणामहु मणमह। हुई पुणु' इह दीवि सुहावहि चंदसूरभावकइ भारहि। चारुजयंतणयरि विक्खायह सिरिमंतहु सिरिसिरिहररायहु । सिरिमइदेविहि विमलसिरी सुय णवमालइमालाकोमलभुय। दिण्णी जणणे पालियणायहु' भद्दिलपुरवरि. मेहणिणायहु। तिविहेण वि णिन्चेएं लइयउ रज्जु मुएवि सो वि पव्वइयउ। 10 भौंरों के शब्दवाले भयंकर भीलों ने उस गाँव को नष्ट कर दिया। घर और धन के नाश से दुःखी सभी लोग वहाँ से भाग खड़े हुए। __घत्ता-लोग जंगल में गये और अत्यन्त दुःखी होकर उन्होंने विषबेल का फल खा लिया। लेकिन उस कृषक कन्या ने फल का नाम न जानने के कारण उसे नहीं खाया। ( 18 ) समस्त जनसमूह मर गया। लेकिन व्रत भंग होने के भय से उसने विषफल नहीं खाया और इस प्रकार पद्मादेवी जीवित रहती है। महान् लोगों का मन संकट में भी निश्चल रहता है। समय के साथ मरकर वह कल्पवृक्ष के भोगवाले हिमवन्त क्षेत्र में उत्पन्न हुई। वहाँ एक पल्य तक जीवित रहकर भोगभूमि के मनुष्यत्व को छोड़कर स्वयंप्रभ द्वीप के स्वयंप्रम देव की स्वयंप्रभा नाम की देवी हुई। फिर, इस जम्बूद्वीप के सुखावह, चन्द्रमा और सूर्य की आभा से अंकित भारत में सुन्दर जयन्तनगर में श्रीमन्त श्री श्रीधर नाम के राजा और श्रीमती देवी की नवमालतीमाला के समान कोमल भुजावाली विमल श्री नाम की पुत्री हुई। पिता ने उसे न्याय का पालन करनेवाले भद्रिलपुर के मेघघोष को दे दिया। तीन प्रकार से निर्वेद लेकर और राज्य छोड़कर वह भी प्रव्रजित हो गया। ५. "मिंग" | 9. AP गहिउ । 10.A भवण दविण। 1. BP भुभिखबर। 1 returds ap जण णिरु दुखिपउ' या पाठः1 12. ABPS अमुणति । (18)1. 5 जणणिया । 2. HAks. लाएचि विलहलं And Als. thinks that यि in his anther Ms is lost : A बिष्णेवि। 4. A गम्याण ; P गरुवाण। 5. APS हेमवरही। 6.5 मुणुि । 7. पुण । M. D देवि। 9. Sणाहहो। 10. AP वरधामहो समीचि पायइयउ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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