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[90.16.13
महाकइपुप्फयंतविरयट महापुराणु एत्थु जि उज्जेणिहि विजयंकर पहु सोमत्तगुणेण ससंकट । तासु देवि अवराइयो णामें गुणमंडिय धणुलट्टि व कामें। घत्ता-तहि पुत्ति सलक्खण विणयसिरि हत्थसीसपुरि रायहु।
दिण्णी हरिसेणहु हरिसिएण ताएं लच्छिमहायहु 16||
दुवई-गयपंचेंदियत्यपरमत्थसिरीरयरमणधुत्तहो'।
दिण्णउं ताइ भोज्जु घरु आयहु' रिसिहि समाहिगुत्तहो ॥छ॥ तेण फलेण सोक्खसंपत्तिहि हुय हेमवयइ भोयधरित्तिहि। पुणु वि वरामरचित्तणिरोहिणि हूई देवहु' चंदहु रोहिणि। एक्कु पल्लु तहिं सुहं माणेप्पिणु जोइसजम्मसरीरु' मुएप्पिणु। धणकणपउरि मगहदेसंतरि । सामलगामि वेणुविरइयधरि। विजयदेवहलियहु पिय देविल सुमुहि सुभासिणि सुहयलयाइल। पउमदेवि तहु दुहिय घणत्यणि सा चंदाणी गुणचिंतामणि । रिसिणाहहु कर मउलि करेप्पिणु वरधम्महु पयाई पणवेप्पिणु । गहिउं ताइ रसणिंदियणिग्गहु अवियाणियतरुहलहु अवग्गहु।
का राजा था जो सौमित्र के गुणों से सशंकित था। उसकी अपराजिता नाम की देवी थी 1 गुणों से मण्डित वह कामदेव की धनुर्लता के समान थी। ___घत्ता-उसकी लक्ष्मीवती पुत्री विजयश्री थी जिसे लक्ष्मी से सम्पन्न हस्तिनापुर के राजा हरिषेण को पिता ने हर्ष के साथ दे दिया।
(17) पाँच इन्द्रियों के विषयों से रहित तथा परमार्थ-लक्ष्मी में रमण करने में कुशल घर आये हुए समाधिगुप्त मुनि को उसने आहार-दान दिया। उसके फल से वह सुख-सम्पत्ति से भरपूर भोगभूमि में हेमवती हुई। फिर उत्तम देवों के चित्तों का निरोध करनेवाली वह देव की देवी हुई, उसी प्रकार जिस प्रकार चन्द्रमा की रोहिणी। वहाँ एक पल्य पर्यन्त सुख मानकर ज्योतिर्जन्य शरीर का त्यागकर धान्यकण से प्रचुर मगध देश के, बाँस से निर्मित घरोंवाले शालिग्राम में विजयदेव हलधर की सुमुखी, मीठा बोलनेवाली, और सौन्दर्य लता की भूमि देविल प्रिया थी। उसकी बह पद्मादेवी नाम की सघन स्तनोंवाली कन्या हुई, जो गुणों की चिन्तामणि, रोहिणी का जीव थी। उसने मुनिवर के लिए हाथ जोड़कर और श्रेष्ठ धर्मवाले उनके पैर पड़कर रसना इन्द्रिय के निग्रह का व्रत ग्रहण कर लिया कि-वह नहीं जाने हुए फल को ग्रहण नहीं करेगी। मुख की हवा से विलसित
13. 5 अयराय। 14.5य शिव | 15. P हत्यिसीसे।
(17)1. B“रइरमण 12. P आयहि । 3. APS देवय । 4. S"सरीर। 5. A सामरिगामे; BES सामलिगामे। 6. B समुहि। 1. ARS तहि।