________________
90.16.12]
महाकइपुष्फयतविरयउ महापुराणु
[ 203
20
घत्ता-मुय कालें तें मिगणयण" उत्तरकुरुहि हवेप्पिणु। पुणु भावणिंदमहएवि" हुय हउँ उप्पण्ण चएप्पिणु ॥15॥
(16) दुवई-पुणु' केयारणयरि णरवइसुय "संजमदमदयावर।
झत्ति समासिऊण सब्भावें 'सायरयत्तमुणिवरं ॥छ॥ किउं तवचरणु परमरिसिआणइ मय गय थिय सोहम्मविमाणइ । सुमइहु समइहि धणजलवाहहु कोसबिहि णयरिहि वणिणाहहु । पुणरावे अमरालावणिसद्दाह' हूई सुय सेविणिहि सुहद्दहि । जणवएण कोक्किय सुहकम्मिणि धम्मसील सा णामें धम्मिणि। आइततिगति समीगि एमभी जिणवरगुणसंपत्ति वउत्थी'। वीवसोयपुरि पुणु कयणिरइहि मेरुचंदरायहु चंदमहि। गोरी एह धीय उप्पण्णी
जएं दिण्णी। आणिवि तुज्झु कण्ह कयणेहें पई वि अणंगबाणहयदेहें। परिणिय पीणियरइमयरद्धउ महएवित्तणपटुत णिबद्धउ। पुणु आहासइ देउ दियंबरु णिसुणहि पोमावइजम्मतरु।
10
घत्ता-आयु पूर्ण होने पर वह मृगनयनी मृत्यु को प्राप्त हुई और उत्तरकुरु में होती हुई फिर भवनवासी स्वर्ग में देवी हुई। वहाँ से आकर मैं उत्पन्न हुई हूँ।
(16) केदार नगरी में राजा की पुत्री हुई और शीघ्र ही संयम, दम और दया में श्रेष्ठ सागरदत्त मुनिवर के पास सद्भाव से आश्रय लेकर मैंने परम ऋषि की आज्ञा से तपश्चरण किया और मरकर सौधर्म विमान में स्थित हुई। फिर कौशाम्बी नगरी में धन को पानी की तरह बहानेवाले अच्छी मतिवाले सुमति सेठ के यहाँ
और फिर देवों के आलाप के समान शब्दोंवाली सुभद्रा सेठानी की पुत्री हुई। शुभ कर्म करनेवाली और धर्मात्मा कहकर उस धर्मशीला को पुकारना आरम्भ कर दिया। फिर अतिशान्ति आर्या के पास प्रशस्त जिनवर गुणों को प्राप्त व्रतों में स्थित वह, वीतशोकनगर के पुण्यरत मेस्चन्द्र राजा और चन्द्रमती की गौरी नाम की यह पुत्री उत्पन्न हुई जो विजयपुर के नरेश विजय ने दी है। हे कृष्ण ! प्रेम करनेवाले और कामदेव के तीरों से आहत शरीर तुमने भी उससे विवाह कर लिया तथा कामदेव को प्रसन्न करनेवाला महादेवी का पट्ट उसे बाँध दिया। दिगम्बर मुनि पुनः कहते हैं-अब पद्मावती के जन्मान्तर सुनो। यहाँ उज्जैन में विजय नाम
17. AP गि: मिगणपणे। 18. B भावणेद | 19. A तहे तं देहु मुएप्पिणुः । तं देहु मुएप्पिणु।
(16) 1. पुण। 2. P समसंजमदया। 3. दयाघरं। 4.A सायरपरसमुणिवर; BP सायरदत्त । 5.P मुय । 6. P सुमरहे। 7. A अमलालाविणि PS "लायिणि । ४. BS अइक्वंति। 9, HPS add after this : सा मह (१ महि) सुक्कसग्गे देवी हुप, तेत्यु सोक्खु मुंजेवि पुणरवि चुय। 10. AP तणे; AS"नण। 11.5 णिसुणइ । 12. S सकंसल।