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________________ 2021 महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु [90.15.5 इह गंधारिविसइ कोमलवणि सुपसिद्धहु रायहु इंदइरिहि मेरुमईहि गब्भि उप्पण्णी किर मेहुणयहु दिज्जइ लग्गी पई जाइवि तं पडिबलु जित्तउं णिसुणि साम पियराम पयासमि णायणयरि हेमाहु गरेसरु । चारणु जसहरु पियइ णियच्छिउ त संभरिवि पइहि वक्खाणिउं 1वड्डमाणपुरिसिस्थीपंडइ पुवामरगिरिअवरविदेहइ आणंदहु जाया' णियवस ताइ दयालुयाइ गुणवंतइ दिण्णउं अण्णदाणु भयतंदहु। णहि देबई पच्चक्खई आयई "विउलपुक्खलावइवरपट्टणि । असिधारादारियणियवइरिहि। धूय एह गंधारि रवण्णी। अक्खिउं गारएण तुह जोग्गी। कण्णरयणु एउं रणि हित्तउं। गोरीभवसंभवणु समासमि। जससइभज्जथणंतरकयकरु'। वंदिवि णियजम्मतरु पुच्छिउ । जं णियगुरुसमीवि सुवियाणिउं। भणइ महासइ' धादइसंडइ। पवरासोयणयरि वरगेहइ। णंदयसा सयसा कयरइरस । णवविहु' पुण्णवंतु वणिकतइ। अमियाइहि सायरहु मुणिंदहु। पंचच्छरियइं घरि संजायई। 15 पुष्कलावती श्रेष्ठ नगर के सुप्रसिद्ध, असि की धारा से अपने शत्रुओं का अन्त करेनवाले राजा इन्द्रगिरि की मेरुमती के गर्भ से उत्पन्न हुई कन्या सुन्दर गान्धारी है। जब यह मामा के लड़के को दी जाने लगी, तो नारद ने कहा कि यह तुम्हारे योग्य है। तुम वहाँ से चलकर शत्रुसेना को जीतकर इस कन्यारत्न को रण से उठा लाये। हे श्याम ! और प्रिय राम ! (बलराम) सुनो, संक्षेप में गोरी के जन्मान्तरों का कथन करता हूँ। नागपुर में हेमाभ नाम का राजा था जो अपनी यशस्वती भार्या के स्तनों के बीच में हाथ रखनेवाला था। एक दिन प्रिया ने यशोधरा चारण मुनि को देखा। उनकी वन्दना कर उसने अपने जन्मान्तर पूछे। उनसे अपने जन्मान्तर सुनकर उसने अपने पति के लिए बताया जो उसने गुरु के समीप जाना था। वह महासती कहती है कि जिसमें पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसक वृद्धि पर हैं, ऐसे धातकीखण्ड द्वीप में पूर्व विजयार्ध पर्वत के पश्चिम विदेह में उत्तम गृहोंवाला अशोकनगर है। आनन्द की आज्ञाकारिणी, यशवाली, रतिरस माननेवाली नन्दयशा नाम की सेठ की. पली थी। उस गुणवन्ती दयालु सेठानी ने निर्भय अमितसागर मुनीन्द्र को पुण्यवान् नौ प्रकार का आहार दान दिया। आकाश में देव प्रत्यक्षरूप से आये और घर में पाँच आश्चर्य प्रकट हुए। 6. वरपुक्खलावद विषले पोक्खलावद 17.5 करकरू। R.Aomits this line. 9. AS "समीवि खलु जाणिऊB समीवि सुयाणि: समीसुवियाणिउं। 10. H यमाण: P बद्धमाण°111. A पोरिसि थियसक्षए। 12. AP महारिसि। 13. ABPS जाया जाया बस। 14. णवविहपुण्णयंतु:P पुण्णु पत्तु; As. णवविहपुग्णवंतवणि। 13, AP हयर्णिदहो; BALs. भयवंदहो। 16. P अभियायहि।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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