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________________ 90.15.4] 10 म. सावित्यः मा [ 201 भणइ भडारउ महुमह मण्णहि गंधारिहि भवाइं आयण्णहि।। जंबुदीवि कोसलदेसंतरि पहु सिद्धत्यु अत्यि उज्झाउरि । विणयसिरि त्ति पत्ति पत्तलतणु बुद्धत्थहु करि दिण्णउं सुअसणु। मुणिहि तेण पुण्णेणुत्तरकुरु तहिं मुउ णाहु कहि मि जायउ सुरु । घरिणि मरेप्पिणु जोण्हारुदहु चंदवई' पिय हूई चंदहु। एत्थु दीवि पुणु खयरमहीहरि उत्तरसेढिहि णहवल्लहपुरि। विज्जुवेयकंतहि सद्दित्तिहि पुत्ति पहूई उत्तिमसत्तिहि । णिच्चालोयणयरि रुइरुंदहु णाम सुरूविणि दिण्ण महिंदहु। मुणि विणीयचारणु वैदेप्पिणु अण्णहिं दिवसि धम्मु णिसुणेप्पिणु। यत्ता-तउ लइउ महिदें पत्थिविण पंच वि करणई दंडियई। अट्ठ वि मय धाडिया णिज्जिणिवि तिणि वि सल्लई खोडेयइं ।।14।। (15) दुवई-ताइ सुहद्दियाहि पयमूलइ मूलगुणेहि' जुत्तउं। तउ अच्चंतधोरु मारावहु तणुतावयरु तत्तउं ॥छ।। मुय संणासे पुणु णिरु णिरुवमु पहिलइ सग्गि एक्कु पल्लोवमु। भुत्तउं ताइ चारु देवित्तणु ढुक्कउं तहिं वि कालि परियत्तणु । गोरी और पद्मावती पूर्वजन्मों में किन आपत्तियों को प्राप्त हुईं ?" आदरणीय कहते हैं-हे कृष्ण ! गान्धारी के जन्मान्तरों को सुनो और सत्य मानो। जम्बूद्वीप के कौशल देश में अयोध्यापुरी में राजा सिद्धार्थ था। उसकी विनयश्री पत्नी थी, जो दुबले-पतले शरीर की थी। उसने बुद्धार्थ मुनि के हाथ में आहार-दान दिया। उस पुण्य से मरकर उत्तरकुरु में कहीं पर उसका पति देव हुआ। गृहिणी मरकर ज्योत्स्ना से विशाल चन्द्रमा न चन्द्रावती देवी हुई। इसी द्वीप में फिर से विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी के गगनबल्लभपुर में उत्तम शक्तिवाले सद्दीप्ति राजा और विद्युवेगा की पुत्री हुई। नित्यालोक नगर में कान्ति से महान् राजा महेन्द्र के लिए वह सुन्दरी दी गयी। वहीं विनीतचारण मुनि की वन्दना कर, दूसरे दिन धर्म को सुनकर__ पत्ता-राजा महेन्द्र ने तप ले लिया, और पाँचों ही इन्द्रियों को दण्डित किया, आठों मदों का नाश किया और तीनों शल्यों को जीतकर उन्हें खण्डित कर दिया। (15) उसने भी सुभद्रा आर्यिका के चरणमूल में मूलगुणों से युक्त होकर अत्यन्त घोर काम का नाश करनेवाला तप किया। संन्यास से मरकर पुनः उसने पहले स्वर्ग में एक पल्य तक अत्यन्त अनुपम सुन्दर देवील्व का भोग किया। समय होने पर, उसकी भी परिसमाप्ति हो गयी। यह गान्धार विषय में कोमल उधानवाले विशाल 4. B मरमह । 5.5 उम्झायरे। 6.5*णुत्तरु कुरु। 7. B चंदपई। B. P विज्जवेय.9.A उत्तम । 10, A सरूविणि। 1.5 दिवसें।।2.A बाहिवि: B धाडिउ । (15) 1. B°गुणाहि। 2. तबु । 3. 9 मुइ। 4. 5 देवत्तणु। 5. APS परिवत्तणु ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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