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________________ 2001 [90.13.7 महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु परि चंदउरि 'महिंदु महापहु तासु अणुंधरि णामें पियवहु। तुहूं तहि कणयमाल देहुभव हूई हंसवंसवीणारव। लइयउ पई रइरमणरसालइ वरु हरिवाहु सयंवरमालइ। अण्णहिं दिणि तिहुयणचूडामणि' वंदिवि सिद्धकूडि जमहरमुणि। बोलीणाई भवाइं सुणेप्पिणु मुत्तावलिउववासु करेप्पिणु। तइयसग्गि देविंद वल्लह हुई पुण्णविहूणह दुल्लह। णवपल्लोवमाई जीचेप्पिणु पुणु सुरबोंदि' अणिंद चएप्पिणु। संवरराएं हिरिमइकंतहि तुहुं संजणिय विविहगुणवंतहि। पउमसेणधुयसेणहु अणुई लक्खण णाम पुत्ति तणुतणुई। धत्ता-पढमेव पसंसिवि गुणसयई णहसायरचलमयरें। तुहं आणिवि अप्पिय महुमहहु पवणवेयवरखयरें ॥13॥ (14) दुवई-तेण वि तुज्झु दिण्णु देवित्तणु पट्टणिबंधभूसियं'। ता तीए वि णमिउ णेमीसरु दुच्चरियं विणासियं ॥छ। पुच्छइ माहवु मवणवियारा महं अक्खहि वरयत्तभडारा। गंधारि वि गोरि वि पोमावई किह पत्ताउ भवेसु भवावइ । ____ 15 नर्तकी हुई। इस भरतक्षेत्र के विजयार्धपर्वत की दक्षिण श्रेणी में चन्द्रकिरणों से उज्ज्वल चन्द्रपुर में महेन्द्र नामक महान् राजा था। उसकी अनुन्धरा नाम की प्रिय वधू हुईं। तुम हंस और वीणा के समान स्वरवाली उसके शरीर से कनकमाला नाम से उत्पन्न हुई। तुमने रतिरस की घर स्वयंवरमाला से हरिवाहन को अपना वर बनाया। दूसरे किसी दिन त्रिभुवनश्रेष्ठ यमधर मुनि की सिद्धकूट पर्वत पर वन्दना कर और अपने बीते हुए पूर्व भव सुनकर तथा मुक्तावलि उपवास कर तीसरे स्वर्ग में देवेन्द्र की पत्नी हुई जो पुण्य से विहीन के लिए दुर्लभ है। नौ पल्य के बराबर आयु जीकर फिर देवशरीर से च्युत होकर, वह तुम संवर राजा की विविध गुणों से युक्त श्रीमती पत्नी के रूप में उत्पन्न हुईं। पद्मसेना और ध्रुवसेना छोटी थीं और लक्ष्मणा सबसे छोटी थी। ___घत्ता-आकाशरूपी समुद्र के मत्स्य पवनवेग विद्याधर ने पहले से ही सैकड़ों गुणों की प्रशंसा कर तुम्हें लाकर श्रीकृष्ण को सौंप दिया। उन्होंने भी तुम्हें पट्टबन्ध से विभूषित देवीपद प्रदान किया। उसने भी नेमीश्वर को नमस्कार कर अपने दुश्चरित का नाश किया। कृष्ण पूछते हैं- "हे कामदेव को नाश करनेवाले परम आदरणीय ! बताइए, गान्धारी, .A महिंद। 3. ABPALS. मणविसालए। 4. Pतियण,5तिहूयण 15. देवेंदहो। 6. A सुरवंदि; BP सुरवोदि । सुरदोदि। 7.AP पणवेयि पौंसवि। R. S पावहो। (14) 1. Bofणबद्ध। 2.5 यि 3. Pमाहउ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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