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90.13.61
महाकइपुष्फयंतविरया महापुराणु
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जणणिहि जेट्टहि णपणरविंदहु पुणु सुरवडणहु णरिंदहु। तुहु सुसीम सुय हरिघरिणित्तणु ___पत्ती माइ" परमगुणकित्तणु। पुणु लक्खणइ" वियक्खणसारउ णियभव पुच्छिउ देउ भडारउ। अखइ गणहरु वरिणी मोहह बूदीबह कुटिरोइ : | पवरपुक्खलावइविसवंतरि
सारि अरट्ठिणयरि कुवलयसरि । वासवराएं वसुमइदेविहि सिसु सुसेणु जायउ सियसेविहि । ताएं संजमेण अइसइयउ
सयरसेणपासि" तउ लइयउ। घत्ता-अइअट्टझाणवसेण मुय पुत्तसणेहें। वसुमइ।
हूई पुलिंदि गिरिवरकुहरि मिच्छत्तें मइलियमइ ॥12॥
दुवई-विट्ठउ ताइ कहिं मि तहिं माणणि सायरणदिवद्धणी।
चारणमुणिवरिदु पणवेप्पिणु सिद्धिलियकम्मबंधणो ॥छ। सावयवयइं तेण तहि दिण्णई उज्झियधम्मई कम्मई छिण्णई। भत्तपाणपरिचायपयासें
सवरि मरेवि तेल्धु' संणासें । हूई हावभावविभमखणि
अट्ठमसग्गसुरिंदहु णच्चणि। पुणु इह भरहखेत्ति खयरायलि दाहिणसेढिहि चंदयरुज्जलि ।
कर लिये। रत्नावली उपवास कर तथा सल्लेखनाव्रत की विधि से मरकर, अपनी द्युति के प्रभाव से माहेन्द्र स्वर्ग में चन्द्रमा को जीतनेवाली देवी हुई। फिर, नेत्रों के लिए सूर्य के समान सुराष्ट्रवर्धन राजा की जेठी रानी से तुम सुसीमा नाम की कन्या उत्पन्न हुईं और फिर कृष्ण के परम गुण-कीर्तन से युक्त पत्नीत्व को प्राप्त हुई। फिर, लक्ष्मणा ने अपने पूर्वजन्म पूछे। पण्डितश्रेष्ठ आदरणीय देव गणधर कहते हैं कि जम्बूद्वीप में मेघों से बरसते विदेहक्षेत्र में विशाल पुष्कलावती देश के अन्तर्गत कुवलयों की नदी अरिष्टा नाम की नगरी है। उसमें वासवराज की श्री से सेवित वसुमती देवी को सुषेण नाम का पुत्र हुआ। पिता ने सागरसेन मुनि के पास संयम से महान् तप ग्रहण कर लिया।
के प्रेम में अत्यन्त आर्तध्यान से मरकर तथा मिथ्यात्व से मलिनमति होकर गिरिवर की गुफा में भीलनी हुई।
(13) उसने वन में कहीं सागरनन्दिवर्द्धन मुनि के दर्शन किये। शिथिलित कर्मबन्धवाले चारणमुनि को प्रणाम किया। उन्होंने उसे श्रावकव्रत दिये। उसने धर्म से रहित कर्मों को काट दिया। भक्तप्राणों का त्याग करनेवाले प्रयास से युक्त संन्यास से वहाँ मरकर वह भीलनी आठवें स्वर्ग के इन्द्र की हावभाव और विभ्रम की खदान
कत्र
9. नुहं । 10. B मस्य । 11.A लक्खणपविपक्वण . 12. ABS भनुPभउ। 13. ABP सायरीणापासि, सायरेण पासित्तउ । H. Aमिणेहें। 15. पुलिदिए।
(13) 1.5 तित्य।