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________________ 18 | महाकइपुष्कयंतविरवउ महापुराणु [81.18.13 खत्ता-जणवइ2 हरिवरिसि पहु कहइ सयलमणरंजणु'। भोयपुराहिवइ मेरउं पिय" राउ पहंजणु ॥18॥ (19) महसोहाणिज्जियकमलसंड तहु गेहिणि महु मायरि मिकंई। हउं सीहकेउ केण वि ण जित्तु आणेप्पिणु केण वि एत्यु घित्तु। तं सुणिवि मिकंडइ' जणिउ जेण मंतिहिं मक्कंडु जि भणिउ तेण। त पवरसिंधुरारुढदेहु बहुवरु पइठ्ठ पुरि बद्धणेहु । बहुकिंकरहिं सेविज्जमाणु' धयछत्तावलिहिं पिहिज्जमाणु। चलचामरेहिं विज्जिज्जमाणु थिउ दीहु कालु सिरि भुंजमाणु। तडिमालापियकतासहाइ कालें कवलिइ मक्कंडराइ। संताणि तासु जाया अणिंद हरिगिरि हिमगिरि वसुगिरि गरिंद। जणसंबोहणउवणियसिवेहि अवर वि बहु गणिय गणाहिवेहि। पुणु देसि कुसत्थई हुउ अदीणु सउरीपुरि राणउ सूरसेणु । कुलि' तासु वि जायउ सूरवीरु धारिणिसुकंतमाणियसरीरु । घत्ता-समस्त मनों का रंजन करनेवाला राजा कहता है-हरिवर्ष जनपद में भोगपुर के राजा प्रभंजन मेरे पिता हैं। (19) मुख-सौन्दर्य से कमल-समूह को जीतनवाली, उनकी गृहिणी मृकण्डु मेरी माँ है। यह सुनकर कि इसे मृकण्दु ने उत्पन्न किया है, मन्त्रियों ने इस कारण उसका नाम मार्कण्डेय रख दिया। तब प्रवर गजवर पर आरूढ़ देहवाले, परम्पर बद्धस्नेह, वधू-वर ने नगर में प्रवेश किया। अनेक सेवकों से सेवा किये जाते हुए और ध्वज-छत्रों से आच्छादित, चंचल चमरों से हवा किये जाते हुए वे दोनों बहुत समय तक लक्ष्मी का भोग करते रहे। विद्युन्माला पत्नी है सहायक जिसकी, ऐसे मार्कण्डेय राजा के काल-कवलित होने पर, उसकी सन्तान परम्परा में क्रमशः अनिन्द्य हरिगिरि, हिमगिरि और वसुगिरि राजा हुए। लोगों को सम्बोधन के द्वारा शिव (मोक्ष) ले जानेवाले गणधरों ने (उस परम्परा में और भी राजा गिनाये हैं। फिर कुशस्थ देश के शौरीपुर में समर्थ (आदीन) राजा शूरसेन हुआ। उसके भी कुत में शूरवीर वीर राजा हुआ, जिसका शरीर कान्ता और धारिणी के द्वारा मान्य था, . -. ..-. -" I: Sणका। 13.8 कर्शन . PS मालगांजण। IBA पुरहिवह। 16. APS ज़ि। (19)। "संद। 2. BIFA | R. Biतु। 4. 8 मिकंडुए। 1. 5 मक्कंड । 6. AB ता पवरसंधुरा । 7.5 पहाविज्जमाणु। R. A कुसित्यए। ". A मुरारा
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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