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81.18.121 महाकइपुष्फयंतविरयर महापुराणु
[17 घत्ता-गय सुरखर गयणि तहिं पुरवरि अमरसमाणउ। यंदकित्ति विजय छुडु जिज जाम मुड. सगं ॥17॥
(18) तहु तहिं संताणि ण पुत्तु अत्यि अहिवासिउ 'मंतिहिं भद्दहस्थि ।। जलभरिउ कलसु 'करि दिण्णु तासु कंकल्लिपत्तसंछाइयासु। करडयलगलियमयसलिलबिंदु चलरुणुरुणंतमिलियालिवृंदु'। उत्तंगु णाई जंगमु" गिरिंदु सहुं परियणेण चल्लिउ करिंदु । दिब्वेण 'दइवसंचोइएण
मुक्कंकुसेण उद्धाइएण। उवयणि पइसिवि सिरिसोक्खहेउ अहिसिंचिउ करिणा सीहकेउ । परिवारें मिलिवि णिबद्ध पटु मा को वि करउ भुयबलमरटु । परिणवई कम्मु सव्वायरेण । चिरभवसंचिउँ कि किर परेण। णउ दिज्जइ संपय दिणयरेण गोविंदें बंधे तिणयणेण। दुग्गाइ ण 'जक्खें रेवईइ विणडिज्जइ० जणु मिच्छारईई। जय जीव" देव पभणंतएहिं पुच्छिउ पुणु राउ महंतएहिं।
को तुई भणु सच्चउं जणणु जणणि आगमणु काई का जम्मधरणि । घत्ता--देवश्रेष्ठ आकाश में चले गये। उस चम्पापुर नगरवर में देव के समान विजयी राजा चन्द्रकीर्ति राजा अचानक मर गया।
( 18 ) वहाँ उसकी परम्परा में कोई पुत्र नहीं था। मन्त्रियों ने भद्रहाथी को सजाया और जिसका मुख अशोक वृक्ष के पत्तों से ढका हुआ है ऐसा कलश उसकी सैंड में दे दिया। जिसकी सूंड से मदजल की बूंदें गिर रही हैं, जिस पर चंचल गनगनाता हआ भ्रमर-समह उढ़ रहा है. ऐसा पहाड के समान ऊँचा हाथी परिजनों के साथ चला। दिव्य दैव से प्रेरित, अंकुश से रहित दौड़ते हुए हाथी ने उपवन में प्रवेश कर श्री और सुख के हेतु सिंहकेतु का अभिषेक किया। परिवार ने मिलकर उसे पट्ट बाँध दिया। किसी को अपने बाहुबल का घमण्ड नहीं करना चाहिए। चिरसंचित कर्म समस्त रूप से परिणत होता है; दूसरे से क्या ? सम्पत्ति न तो दिनकर के द्वारा दी जाती है और न गोविन्द, ब्रह्म और शिव के द्वारा अथवा दुर्गा, यक्षी और नर्मदा के द्वारा। लोग मिथ्या-रति के द्वारा नचाये जाते हैं। "हे देव, जय, जिओ" यह कहते हुए मन्त्रियों ने राजा से पूछा-"सच बताओ, तुम कौन हो, कौन तुम्हारे माता-पिता हैं ? यहाँ क्यों आये ? तुम्हारी जन्मभूमि क्या है ?"
(18) 1. B मंतहिं । 2. A करदिण्णु। 3. S"संदाइयासु। 4.5 मिलियालबंदु: BP विंदु। 5. ABPS उत्तुं। 6. B जंगम। 7. B दइय। ३. सिंचिऊ सिंथिय। 9. B जक्खि । 10. B विडिऊरइ11.5 जीय ।