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महाकइपुण्फयंतविरयत महापुराणु
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साहणविहि फणिखेयरपुज्जहं खोहणिमोहणिमारणविज्जहाँ। गउ तियसाहिउ' तियसविमाणहु' लग्गु जणद्दणु भणियविहाणहु। मंतें खीरसमुदु रएप्पिणु तहिं अहिसयणहु उवरि चडेप्पिणु। विज्जउ साहियाउ गोविदें पुणु रणि जुज्झिवि समउं खगिंदें। तुहं परिणिय कण्हें बलगावें महएवित्तु दिण्णु सबभावें। ता' जंबबइइ सभषु सुणतिइ मुणिकमकमलजुयलु" पणवतिइ। घत्ता-भत्तिइ पणिवाउ "करंतियइ संचियसुहदुहकम्मई।
ता भणिउं सुसीमइ वज्जरहि महुं वि देव गयजम्मई" ॥10॥
दुवई-पभणइ मुणिवरिंदु सुणि सुंदरि धादइसंडदीवए।
पुयिल्लम्म भाइ पुबिल्लविदेहि पहुल्लणीवए ॥७॥ मंगलवइजणवइ मंगलहरि रयणंचियइ' रयणसंचयपुरि। वीसदेउ पहु देवि अणुंधरि मुउ पिययमु रणि अरिकरिवरहरि। करि करवालु करालु करेप्पिणु उज्झाणाहें सहुँ जुज्झेप्पिणु। पणइणि समउं पइट्ठी हुयवहि पयडियथावरजंगमजियपहि।
अपराजेय है, वह दर्भासन पर बैठ गया। तब स्नेह से युक्त, पूर्वजन्म के भाई सहोदर यक्षिल, महाशुक स्वर्ग का देव वहाँ आया और उसने नागों और विद्याधरों से पूज्य क्षोभिनी, मोहिनी और मारण विद्याओं की साधनविधि बतायी। देव अपने देव विमान में चला गया। कृष्ण बताए हुए (विद्या साधन) विधान में लग गया। मन्त्र के द्वारा क्षीर समुद्र की रचना कर और उसमें नागशय्या पर चढ़कर गोविन्द ने विद्याएँ सिद्ध कर ली और फिर युद्ध में विद्याधरेन्द्र के साथ लड़कर, बलगर्व के साथ तुमसे विवाह किया। सद्भावपूर्वक तुम्हें महादेवी का पद दिया। इतने में जाम्बवती के पूर्वजन्म सुनते हुए, मुनि के चरणकमलों का वन्दन करते हुए
पत्ता-भक्ति से प्रणाम करते हुए सुसीमा ने कहा-“हे देव ! सुख-दुःख का संचय करनेवाले मेरे गतजन्मों को बताइए।"
(11) मुनिवर कहते हैं- "हे सुन्दरी ! सुनो-धातकीखण्ड दीप के विकसित कदम्ब वृक्ष से युक्त पूर्व विदेह के मंगलावती जनपद में मंगलगृह रत्नसंचयपुर में राजा विश्वदेव और उसकी पत्नी अनुन्धरी देवी है। शत्रुरूपी गजों के लिए सिंह के समान उसका पति अपने हाथ में तलवार लेकर और अयोध्यानाथ के साथ जूझकर युद्ध में मारा गया। प्रकट है स्थावर और जंगम जीवों का वध जिसमें ऐसी आग में प्रणयिनी अनुन्धरी भी
{P बिहाग also) | 8. 5 बलगामें। 9. जा। 10. समज; S समबु । 11. ABP मुणि बंदियउ सीसु विहोतए। 12.5 करतिए।
(11)1. रयांचए। 2. B“संघियः। 3. A वीसंदन ।