SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1961 महाकाइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु [90.9.9 किंणरपुरणाहेण संसल्लें आवेप्पिणु ससयणवच्छल्लें। मच्छियाउ' विद्धसिवि घित्तउ जंबुकुमारु' तांब तहिं पत्तउ' । 10 णिरु गज्जंतु णाइ खयसायरु जंबवंतसुउ" तेरउ भायरु। तेण असेसउ विज्जउ छिण्णउ पडिभडणियरु दिसाबलि दिण्णउ। णमिणा'2 सह दिणयरकरपविमलि जक्खमालि गउ णासिविणहयलि। तहिं अवसरि संगामपियारउ जाइवि कण्हहु अक्खइ णारउ । पत्ता-जंबूपुरि जंबवंतखगहु जंबुसेण पणइणि सइ । रूवें सोहग्में णिरुवमिय ताहि! धीय जंबावइ ॥9॥ (10) दुवई-ता 'सरसुच्छुदंडकोवंडविसज्जियसरवियारिओ। रणि मयरद्धएण गरुडद्धउ कह वि हु ण मारिओ ॥छ। हरि असहंतु मयणबाणावलि गउ जिणपयणिहितकुसुमंजलि । खयरगिरिंदणियंबु पराइड जाणिउ जंबवंतु' अवराइट। ‘उववासिउ दब्भासणि सुत्तउ तावायउ सिणेहसंजुत्तउ। जक्खिल चिरभवभाइ सहोयरु भासिवि तासु महासुक्कामरु । ले जाऊँगा।" यह सुनकर तुम्हारे उन पिता ने मक्षिका विद्या से उसे कटवा दिया। इस प्रकार ससुर ने अपने भानजे को कष्ट दिया। तब किन्नर नगर के स्वामी यक्षमाली ने शल्यसहित, अपने स्वजन के वात्सल्य के कारण आकर मक्षिका विद्या को नष्ट करके फेंक दिया। इतने में जम्बुकुमार वहाँ आ पहुँचा-एकदम क्षयसमुद्र के समान गरजता हुआ; जाम्बवन्त का पुत्र और तुम्हार छोटा भाई। उसने समूची विद्या नष्ट कर दी शत्रु योद्धा समूह की दिशाबलि दे दी। यक्षमली नमि के साथ दिनकर-किरणों से निर्मल आकाश में भाग गया। इसी अवसर पर संग्रामप्रिय नारद कृष्ण से कहते हैं___घत्ता-जम्बूपुर में जाम्बवन्त विद्याधर की जम्बूसेना नाम की सती प्रणयिनी है। उसकी कन्या जाम्बवती रूप और सौभाग्य में अद्वितीय है। (10) सरस इक्षुदण्ड के धनुष से विसर्जित तीरों से विदारित करनेवाले गरुड़ध्वजी (कृष्ण) को युद्ध में कामदेव ने किसी प्रकार मारा भर नहीं। कामदेव की बाणावली को सहन नहीं करते हुए तथा जिन के चरणों में कुसमांजलि चढ़ानेवाले कृष्ण वहाँ गये। विद्याधर राजाओं का समूह आ गया। यह जानकर कि जाम्बवन्त FA सभालें। 7.AP पक्खिया। 5. B°कुमार। 9. संपत्तउ। 10. Bणामि। 1. BP "यतु। 12.5 मणिणा। 13 मिडियले 1 14.5 जायवि।। th. AP जाहि: (10)1.5 सुरसुनह". 2. “कोदंड. 3. "णिहितु। 4. जंबुवंतु । 3. AP गसडसीहि (B भोहि) थाहिणियह विजह 16.5 तियसाहिवु । 7. AP विवाणहो
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy