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महाकइपुष्फयंतत्रिरयत महापुराणु
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तुहं सुय सुमइ णाम संभूई ता” णं धम्में पेसिया दूई। सुव्यय भिक्खामग्गि" पइट्ठी भवणंगणि चडति पई दिट्ठी। सहं पणिवाएं पय धोएप्पिणु दिण्णउं दाणु समाणु करेप्पिणु। अवरु वि तणुसंतवियपयासे रयणावलिणामेणुववासें। मुय संणासें णिरु णिम्मच्छर हूई बंभलोइ तुरुं अच्छर। घत्ता-इह जंबूदीवइ वरभरहि इह खयरंकिइ महिहरि।
उत्तरसेढिहि' ससियरभवणि जणसंकुलि जंबूपुरि ॥8॥
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दुवई-अरिकरिरत्तलित्तमुत्ताहलमंडियखग्गभासुरो' ।
___ खगवइ जंबवंतु तहिं णिवसइ बलणिज्जियसुरासुरो ॥॥ जंबुसेणदेविहि गयवरगइ पुणु हूई सि पुत्ति जंबावइ। पवणवेयखयरहु कोमलियहि तुह मेहुणउ पुत्तु सामलियहि। णमि णामें कामाउरु कंपइ एक्कहिं दिणि सो एम पजपइ। बालकलिकंदलसोमाली
माम माम जइ देसि ण साली । तो अवहरमि' मि बलदप्में तं णिसुणेवि तेण तुह बप्पे। मच्छियविज्जइ सो खावाविउ भाइणेउ ससुरें संताविउ।
से उत्पन्न हुई। इतने में तुमने धर्म के द्वारा प्रेषित दूती के समान, भिक्षामार्ग में प्रविष्ट, घर के आँगन में चढ़ती हुई (चढ़कर आती हुई) सुव्रता आर्या को देखा। प्रणाम के साथ उनके चरणों को धोकर तुमने सम्मान के साथ दान (आहार-दान) दिया। और भी, शरीर को शान्त करने के प्रयासवाले रत्नावली नाम के उपवास और संन्यास से मरकर तुम ब्रह्मलोक में ईर्ष्या से रहित अप्सरा हुई। __घत्ता-इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विजयाधपर्वत की उत्तर श्रेणी में जन-संकुल और चन्द्रमा के समान घरोंवाले जम्बूपुर में
जाम्बवन्त नाम का विद्याधर राजा निवास करता था जो शत्रुगजों के खून से रंजित मोतियों से मण्डित खड्ग से भास्वर था और जिसने अपने बल से सर-असरों को जीत लिया था। हे पत्री ! तुम फिर उसकी -...- - - - . .