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90.7.16]
महाकइपुण्फयंतविरयज महापुराणु
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अपणहिं दिणि' णेमित्तिउ भासइ जे दिवें तइयच्छि पणासई। तहु हत्येण मरण पावेसइ मद्दीसुउ जमपुर जाएसइ। तं सुइविरसु वयणु णिसुणेप्पिणु मायापियरई तणउ लएप्पिणु । सहसा संगयाई दारावइ
दिट्ठउ हरि सिरिकयमारावइ। तहसणि भालयलुवरिष्ठ
बालहु तइयां णयणु पणट्ठउं। जाणिउं तक्खणि मायाताएं पुत्तु मरेसइ महुमहराएं। भद्दिउ वारवार ओलग्गिवि पत्थिउ "मदिइ पायहिं लग्गिवि। महुं तणुरुहहु रइयसुहिडाहहं पइं खमयव्यङ सऊं अवराहह। तं पडिवण्णउं कण्हें मणहरु ताई गवाई पुणु वि णियपुरकरु। वइरिहि सउं अवराहहं पुण्णउं विसहिउँ" हरिणा मद्दिहि दिण्णउं। सो णिहणियि तुहं परिणिय कण्हें आणिय दारावइ जसतण्हें । तं णिसुणिवि मुणिवरकुल' दिलं अप्पुणु" देविइ पुणु पुणु णिदिउ । घत्ता-ता जंबवइ मंसियउ पुच्छिउ भावें मुणिवरु।
आहासइ जलहरगहिरसरु णिसुणहि सुइ” सभवंतरु ॥7॥
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करनेवाला शिव के समान शिशुपाल राजा नाम का पुत्र हुआ। एक दिन निमित्तशास्त्री कहता है-"जिसके देखने से तीसरी आँख मिट जाती है, उसके हाथ से मृत्यु को प्राप्त होगा और यह मद्रीपुत्र शिशुपाल यमपुर को जाएगा।" कानों को अप्रिय लगनेवाले इन शब्दों को सुनकर, माता-पिता पुत्र को लेकर शीघ्र द्वारावती गये और लक्ष्मी से काम को आपत्ति पैदा करनेवाले हरि से भेंट की। उनके देखने से बालक के भालतल पर स्थित तीसरा नेत्र मिट गया। माता-पिता ने उसी समय जान लिया कि कृष्ण के आधात से पुत्र की मृत्यु होगी। कृष्ण की बार-बार सेवा कर माद्री ने पैरों पर पड़कर प्रार्थना की कि सुधियों को ईर्ष्या उत्पन्न करनेवाले मेरे पुत्र के तुम सौ अपराध क्षमा कर देना। यह सुन्दर बात कृष्ण ने स्वीकार कर ली। वे लोग पुनः अपने घर चले गये। शत्रु के सौ अपराध पूरे हो गये; जैसा कि श्रीकृष्ण ने हँसते हुए माद्री से कहा था-उसको मारकर तूने कन्या का पाणिग्रहण किया। यश के लोभी तुम उसे द्वारावती ले आये। यह सुनकर उसने मुनिसंघ की वन्दना की और देवी ने बार-बार अपनी निन्दा की। ___ घत्ता-तब जाम्बवती ने नमस्कार किया और भावपूर्वक मुनिराज से पूछा । मेघ के समान गम्भीर स्वरवाले वे कहते हैं-हे पुत्री ! अपने जन्मान्तर सुनो।
1.8 दिणिहि णिपित्तिः। 5. AP विणासह। 6. AS जमपुरे जमतरु। 7.5 सुप्पिणु। 8. B वरिहि । 9. महए। 10. पणउं। 11. विहिथि । 12. AP कय पहएवि पेम्जललहें। 13. P"कुल। 11.A अप्पउं: P5 अप्पणु। 15. PAIs. जंगबइए। 16. पुणिवरु माये। 17. B सड़।