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पहाकइपष्फयंतविस्यउ महापुराणु
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गामा गामंतरु हिंडतिहि अज्जियाहिं सहुँ जिण वंदतिहि । गयइ कालि जरकंथाधारणि पासुयपाणाहारविहारिणि । सिट्टसिझुणिट्ठाइ सुणिट्ठिय
व चरति गिरिविवरि परिट्टिय। पब्चि पव्वि उववासु करती दुक्कियाई घोराई हरंती। अण्णइ बालइ वालवयंसिय पुण्णवंत तुहं भणिवि पसंसिय। अणसणु 'करिवि तेत्यु मुणिमंतिणि हूई अच्चुइंदसीमतिणि। पणपण्णासपल्लथिरदेही
रूवें जोव्वणेण सा जेही। तिहुयणि अण्ण' ण दीसइ तेही तं वणंती कइमइ केही। घावधि वियरमदास कुंडलपुरि वासवरायहु सइसिरिमइउरि। आसि कालि जा होती" बंभणि सा तुहं एवहुं हूई रुप्पिणि। घत्ता-कोसलपुरि भेसहु पुहइवई म६ि तासु पिव' गेहिणि ।
सोहग्गभवणचूडामणि व णं सिसिरयरहु रोहिणि ॥6॥
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दुवई-जायउ ताहं बिहिं मि सिसुपालु' कयाहियकंदभोयणो।
पसरियखरपयाय' मत्तंडु व चंडबहु' तिलोयणो ॥छ।।
हुए आर्यिकाओं के साथ जिनदेव की वन्दना करते हुए फटी कन्या (कथरी, गुदड़ी) धारण करनेवाली प्रासुक पान और आहार के साथ विहार करनेवाली, मुनियों द्वारा कथित निष्ठा में लीन वह व्रतों का आचरण करती हुई पर्वत-गुफा में प्रविष्ट हुई। प्रत्येक पर्व पर उपवास करती हुई और घोर पापों को नष्ट करती हुई, दूसरी बाल सखी के द्वारा 'तुम पुण्यवान हो'-यह कहकर प्रशंसित हुई। वहाँ पर उपवास करके एवं पंच णमोकार मन्त्र के साथ मरकर अच्युतेन्द्र स्वर्ग में इन्द्राणी हुई। पचास पल्यों तक स्थिर शरीरवाली वह शरीर और रूप में जैसी थी, वैसी दूसरी त्रिभुवन में भी दिखाई नहीं देती थी। उसका वर्णन करनेवाली कविमति भी वैसी है ? वहाँ से च्युत होकर विदर्भ देश के कुण्डलपुर में वासवराजा की सती श्रीमती के उर से उत्पन्न, पूर्व काल में जो ब्राह्मणी थी, वह इस समय तुम रुक्मणी हुई हो। ___घत्ता-कोशलपुर में राजा भीष्मक है। मी उसकी प्रिय गृहिणी है। सौभाग्यभवन की चूडामणि वह ऐसी जान पड़ती है मानो चन्द्रमा की रोहिणी हो।
उन दोनों के शत्रुरूपी कन्द का भोजन करनेवाला, सूर्य के समान प्रखर प्रतापवाला और प्रचण्डों का वध
TAII' बउ:7.A तेन्यु करेमि । *. S सा हजी। १. दीसह अण्ण पण। 19. Bहोति। 11. S प्रिय।
()। ।। सिराधालु। 2. "पयाउ: 5 पनाचु । 9. B बंड्ययहः चंड पडू ।