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________________ 90.6.4 ] महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु मायइ मइयइ मायामहियइ बप्पु ताहि कहिं जीवइ पावहि विदिगिच्छासरितीरि" अहिहिहि चिरु दप्पणि' दिट्ठहु तहु संतहु दंसमलय णिवडंत णिवारइ दुरियतिमिरहर णासियबहुभव संजमभाऊ" वहंत संत तासु किलेसु असेसु वि णासइ पालियकरुणाभावें" सहियइ । बहुदालिदुक्खसंतावहि । मुणिहि समाहिगुत्तपरमेडिहि । पडिमाजोवठियहु भयवंतहु । चेलंचलपवणेणोसारइ । मलइ चलण" कोमलकरपल्लव | जेण चाडु विरइउं गुणवंतहं । रविउग्गमणि धम्मु रिसि भासइ । घत्ता - तुहुं "पुत्ति जीवहं करहि दय मज्जु मासु महु वज्जहि । दुज्जयबल" पंचिंदिव जिणिवि जिणु" मणसुद्धि पुज्जहि ॥5॥ (6) दुबई- ई - इव धम्मक्खराई आयण्णिवि मणिवि ताइ कण्णए । अवयगुणव्ययाई 'पडिवण्ण उवसमरसपसण्णए ॥ छ ॥ मुणिपायारविंदु' सेवंतिहि णियजम्मतराई णिसुणंतिहि । 'भोयदेहसंसारविहेयउ हिउल्लइ वडिउ णिब्वेयउ | [ 191 5 10 नाम की पुत्री हुआ। माँ के मर जाने पर, स्नेहमयी आजी न करुणाभाव से उसका पालन-पोषण किया। बहुत दारिद्र्य और दुःख से सन्तप्त उस पापिनी का पिता भी कहाँ जी सकता था ? विदिगिच्छा नदी के किनारे विराजमान ऐश्वर्यसम्पन्न महामुनि परमेष्ठी समाधिगुप्त प्रतिमायोग में स्थित थे, जिनको उसने पहले दर्पण में देखा था। वह उनके शरीर पर आते हुए डॉस-मच्छरों का अपने वस्त्र के अंचल की हवा से निवारण करती है, और उनके पापरूपी अन्धकार को नष्ट करनेवाले चरणों को कोमल हस्त- पल्लव से मलती है। इस प्रकार संयम के भार को वहन करते हुए गुणवान् महामुनि की उसने सेवा की। उनका समस्त क्लेश दूर हो गया। सूर्योदय होने पर महामुनि ने उसे धर्म का उपदेश दिया । जन्म घत्ता - " हे पुत्री ! तू जीवों की दया कर, मद्य, मांस और मधु का त्याग कर अजेयबलवाली पाँचों इन्द्रियों को जीतकर शुद्धमन से जिन की पूजा कर।" (6) इस प्रकार धर्म के अक्षरों को सुनकर और उन्हें मानकर उपशमभाव से प्रसन्न उस कन्या ने अणुव्रत और गुणव्रत स्वीकार कर लिये। मुनि के चरण कमलों की सेवा करते हुए और अपने जन्मान्तरों को सुनते हुए उसके हृदय में भोग, देह और संसार सम्बन्धों से निर्वेद उत्पन्न हो गया। एक गाँव से दूसरे गाँव जाते 1. A मायासहिय। 5. Prभाया। 6. 3 जीवहि 7. A विदिगिंछा B विजिगिछा PS विजिनिका R. P°मरे । 9 A दप्पणु। 10. APS रण ।। 5 संजमसारु महंतु वहतह 11 संजमसारू वहंतु वहंत PAls संजमभार महंतु यहं । 12. 135 पुत्तिय 15. Pomits 'बल" 14. Somits जिणु । (G) 1. Somits मणिवि। 2. Somits परिवण्णई। 3. 11 रससंपुष्णइए 14. विंद। 5. B विदेहर
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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