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________________ T 190 ] महाकइपुष्कर्यतविरयउ महापुराणु रुहिरपूयकिमिपुंजकरंडउ पावयम्म पुरिलोए तज्जिय जणि भिक्ख वि मग्गति ण पावइ भरणु भ्रष्णु हि रामि णियवरइत्तहु मंदिर सुंदरि धाइय रमणहु उवरि सणेहें घल्लिय अच्छोडिवि घरपंगणि" मुय तहिं पुणु गद्दहजम्मंतरु पुव्वभासें णयणपियारजं चंडदंडसिलघाएं ताखिउ अवडि पडिउ " मुख सूवरु" जायउ घत्ता -- सो खंडिवि पउलिवि घइ तलिवेि देहु परिट्टिउ मासहु पिंडउ' । बंधवयणभत्तारविवज्जिय" । पाविहं को वण्णs आवइ । मुय सा सुण्णालइ पइसेप्पिणु" । हूई दीहदेह" छुच्छंदरि । तेण वि सभयचमक्कियदेहें " । अंगरुहिरु उच्छलिउं हंगणि भुत ं भीसणु दुक्खु निरंतरु | घरु आवंतु सणाहहु केर ं । गद्दहु बहुवएहिं" विद्धंसिउ । पेक्खिवि थोरमाससंघायउ । 4 संभारंभ सिंचिवि । खद्धउ जीहिंदिवलुद्ध हिं" लोइहिं" लुंचिवि" लुचिवि ॥4॥ (5) दुबई -- मंदिरणामगामि मंडुक्किहि "मच्छधिणिहि हूइया । सूयरु मरिवि पुत्ति दुग्गंध णू णामेण पूइया ॥ छ ॥ [ 90.4.7 10 15 रक्त, पीप और कीड़ों का पिण्ड बनकर मांस का पिण्ड रह गया। उस पापशीला का नगर के लोगों ने तिरस्कार किया। वह भाई, बन्धु और पति के द्वारा छोड़ दी गयी। लोगों से भीख माँगने लगी, लेकिन वह भी उसे नहीं मिलती थी। पापियों की आपत्ति का कौन वर्णन कर सकता है ? अपने हृदय में भोजन और धन का स्मरण करती हुई वह एक सूने घर में घुसकर मर गयी और अपने ही पति के सुन्दर घर में छहूँन्दर हुई । वह स्नेह से अपने पति के ऊपर दौड़ी। भय से चौंकते हुए शरीरवाले उसने भी घायल कर उसे घर के बाहर फेंक दिया। उसके शरीर का खून आकाश में उछल रहा था । वहाँ से मरकर, उसने पुनः गधे के जन्म में निरन्तर भीषण दुःख उठाया। अपने पूर्व अभ्यास से अपने पति के सुन्दर घर आते हुए उस गधे की बहुत से छात्रों ने डण्डे और पत्थरों के प्रचण्ड आघातों से त्रस्त कर दुर्दशा कर डाली। तब कुँए में गिरकर वह मर गया और सुअर हुआ। उस स्थूल मांस का समूह देखकर - घत्ता - उसके टुकड़े-टुकड़े कर पकाकर, घी में तलकर, सम्भार के जल में बघारकर, जीभ के लोभी लोगों ने लोंच-लोंचकर उसे खा लिया। (5) वह सुअर मरकर, मन्दिर नाम के गाँव में मण्डूकी मछियारिन की अत्यन्त दुर्गन्धित शरीरवाली पूतिका TS चंडच । 8. APS पुरलोएं 10. P बंधवजण | 10 APS सुचयरेपिणु। 11. 5 पएसेम्पिष्णु। 12. P देडदेह । 13. P5 चक्किया । 14.3P पंगे। 15. APS 16. AP गय for पुणु। 17. AP बहुयएहिं : IK. P उडिउ 19 APS सूयरु 120. AP तलिय 21 APK "लुद्धएण: B लुद्धयहिं 22. APS लोएड एहिं । 23. P चिनि once. (5) 1.5 गामणा। 2. Somits यधिणिहि । १. H सूअर ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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