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________________ 1881 [90,2.1] महाकइपुष्फयंतविरयड महापुराणु दीहरकालचक्कि णिद्धाडिइ इयर वि छ बि हिंडिउ परिवाडिइ। पुणु तिरिक्खुि पुणु णरइ णिहम्मई। को दुक्खाई ण पावइ दुम्मइ। विमलगंधमायणगिरिणिग्गय" जलकल्लोलगलत्थियदिग्गय। णीरपूरपूरियमहिहरदरि गंधावइ णामेण महासरि। ताहि तीरि णं दुक्कियवेल्लिहि पसुअसुहरभल्लंकियपल्लिहि । सो सालायणु भवविब्भुल्लउ कालु णाम जायउ सकरुल्लउ। यत्ता-वर धम्मरिसिहि णिसुणेवि गिर मासाहारु मुएप्पिणु' । वेयडि "पवरजलयाउरिहि खेयरु हुयउ मरेप्पिणु" ॥2॥ 15 दुवई-पुरुबलपस्थिवस्स' जुइमालाबालाललियतणुरुहो। ___ सो वि अणंतवीरकहियामलतवणिरओ महाबुहो ॥छ॥ मरिवि दव्वसंजउ रिसि अइबलु सुरु सोहम्मि लहिवि जिणवयहलु। खगमहिहरि रहणेउरपुरवरि पहुहि- सुकेउहि णहयरकुलहरि। पुत्ति सयंपहाहि संभूई सच्चभाम णं कामविहूई। मित्तियणरेहि तुहुं दिट्ठी एही वत्त गरिंदहु सिट्टी। पुत्ति तुहारी सिय माणेसइ अद्धचक्कवट्टिहि पिय होसइ। 5 में और नरक में गया। दुर्मति कौन दुःख प्राप्त नहीं करता है ? विमल गन्धमादन पर्वत से निकली हुई गन्धावती नाम की महानदी है; जिसने जल की लहरों से दिग्गजों को हटा दिया है, जलों के पूर से पर्वतों की घाटियों को भर दिया है। उसके किनारे पर मानो दुष्कृत की बेल के समान पशुओं के प्राणों का हरण करनेवाले भीलों की बस्ती में वह शालायन ब्राह्मण जन्म से विह्वल कालू नाम का भील हुआ। __ घत्ता-श्रेष्ठ धर्ममुनि की वाणी सुनकर तथा मांसाहार छोड़कर और मरकर वह विजयार्ध पर्वत की अलकापुरी नगरी में विद्याधर हुआ। महाबल राजा की पत्नी ज्योतिर्माला नाम की स्त्री का एक अत्यन्त सुन्दर पुत्र था। वह महापण्डित भी अनन्तवीर्य मुनि के द्वारा कहे गये तप में निरत हो गया। वह द्रव्यसंयमी अतिबल मुनि मरकर जिनव्रत का फल पाकर सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। फिर वह विजयार्ध पर्वत के रथनूपुर नगर में राजा सुकेतु के विद्याधरकुल में स्वयंप्रभा से पुत्री उत्पन्न हुआ जो सत्यभामा नाम से मानो काम की विभूति हुई। निमित्तशास्त्र जाननेवालों ने तुझे देखा और राजा से यह बात कही कि तुम्हारी पुत्री लक्ष्मी का भोग करेगी और अर्धचक्रवर्ती की एप्पिणु। 1.A माणि। 12. 5 महिकार।।9. भल्लंकी । 14.5 सा साला ।।5. B मुएविणु। 16. A पउर। 11. (3)1.A पुरबल"। 2. B पुहुहि। 3. ABP मत्त्वहाम। 4. Sणेमिय°। 5. P तुम्हारी। 6.5 सृय।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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