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90.2.10] महाकइपुष्फयंतविरया महापुराण
[ 187 कि किज्जइ घोरें तवचरणे किं परिंद संणासणमरणें। विप्महं वाहणु णयणाणंदिरु देज्जइ कण्ण सुवष्ण' सुमंदिरु ।
घत्ता--मंचउ सहुँ महिलइ मणहरइ रयणविहूसणु णिवसणु। ___जो ढोवई धम्में बंभणहं मेइणि मेल्लिवि सासणु ॥
(2) दुवई-वीर वि णर तसति घरदासि व णिवसइ गोमिणी घरे।
तस्स परिदचंद किं बहुएं होइ सुहं भवंतरे ॥छ॥ केसालुंचणु णिच्चेलतणु
णग्गत्तणु तणुमलमइलत्तणु । माणुसु 'समणधम्म विगुत्त मरइ परत्तपिस अम्हारइ महयालि' महु पिज्जइ सिद्धउं मिट्ठउं मासु गसिज्जइ। अम्हारइ णिव वियलियमइरइ होइ सग्गु सउयामणिमइरई'। अम्हारइ गोसउ विरइज्जइ जणणि वि बहिणि वि तहिं जि रमिज्जइ। धम्मु परिट्विउ वेयपमाणे किं किर खवणएण अण्णाणे कंताणेहणिबंधणबद्धउ
जीहोवस्थासत्तिई खद्धउ। जडु धुत्तागमकरणे णडियउ सत्तमणरइ डोड्दु" सो पडियउ। 10 धर्म को जानने का प्रयास नहीं किया। घोर तपश्चरण करने से क्या, हे राजन् ! संन्यास-मरण से क्या ? ब्राह्मणों को नयनाभिराम वाहन, कन्या, स्वर्ण और सुन्दर घर देना चाहिए।
पत्ता-सुन्दर महिला के साथ, जो पलंग, रत्नाभूषण और निवास-गृह धर्म (-बुद्धि) से ब्राह्मण को देता है, अपनी भूमि और शासन को छोड़कर,
उससे वीर लोग भी त्रस्त होते (डरते) हैं और लक्ष्मी गृहदासी के समान घर में रहती है। हे राजन् ! बहुत कहने से क्या, उसे दूसरे जन्म में भी सुख होता है। केशलोंच करना, निर्वसनता, दिगम्बरत्व और शरीर को मैला रखना-इस प्रकार श्रमणधर्म से फजीते में पड़ा हुआ तथा परलोक के पिशाच से खाया जाकर मनुष्य मरता है। हमारे यज्ञ के समय मधुपान किया जाता है। पका हुआ मीठा मांस खाया जाता है। हे राजन् ! जिसमें बुद्धिरूपी पाप नष्ट हो गया है, ऐसे हमारे सौदामिनी यज्ञ की मदिरा से स्वर्ग मिलता है। हमारा गौयज्ञ करना चाहिए, उसमें माँ और बहिन से भी रमण करना चाहिए; वेद के प्रमाण से ही धर्म प्रतिष्ठित है, अज्ञानी क्षपणकों (श्रमणों) से क्या ? इस प्रकार कान्ता-स्नेह-निबन्ध से बँधा हुआ तथा जीम
और उपस्थ (गुप्तांग) की शक्ति से खाया गया तथा धूर्तशास्त्र की रचना से प्रतारित वह वज्रमूर्ख सातवें नरक गया। एक लम्बा समयचक्र बीतने पर वह क्रम से दूसरे छह नरकों (भी) में घूमा। फिर तिर्यंच गति
12. सुयण्णु। 15. P समंदिरु। 14. PS रयणु।।5. 5 ढोयइ।
(2)1. B समणु। 2. P धम्मु । 3. "विगुत्तउं। 4. AP महालि; महयाले; AI5. पहयलि । 5. APS मासु वि खजइ। 5.5 नृव । 7. सउपामिणि । #. 5 गोसवु विरज्जह । 9. P पि thr जि। 14. AB डीडु।