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महाकइपुष्पयंतविरयउ महापुराणु
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णवदिमो संधि णिसुणिवि देवइदेविहि भवइं पाय' णवेप्पिणु णेमिहि। हरिकरिसररुहगरुडद्धयहु धम्मचक्कवरणेमिहि ॥ ध्रुवकं ॥
दुवई-तो' सोहग्गरूवसोहावहि गुणमणिमहि महासई।
पभणइ सच्चभाम' मुणिपुंगम भणु मह जम्मसंतई ॥छ। भासइ गणहरु बियसियतरुवरि' मालइगधि मलयदेसंतरि। भद्दिलपुरि मेहरहु णरेसरु सूहउ णं पंचमु मणसियसरु। णंदादेवि चंदबिंबाणण
णहपहरंजियदिच्चक्काणण। अवरु वि भूइसम्मु तहिं बंभणु कमलाबंभणिथणलोलिरमणु । णंदणु णाम मुंडसालायणु अइकामुय' कामियबालायणु" । जणि जायइ' चुयचारुविवेयइ सीयलणाहतिथि वोच्छेयइ। तेण जिणिंदवयणु विद्धसिवि । गाइभूमिदाणाई पसंसिवि। कव्वु करिवि रायहु वक्खाणिउं मूढे राएं अण्णु ण याणिउँ।
नम्वेवीं सन्धि देवकी देवी के भवों को सुनकर तथा मालामृगेन्द्रादि ध्वजाओं से युक्त धर्मचक्र के उत्तम आरा स्वरूप नेमिनाथ के चरणों में प्रणाम कर,
सौभाग्यरूपा और शोभा की सीमा, गुणरूपी मणियों की भूमि महासती सत्यभामा कहती है-“हे मुनिश्रेष्ठ ! मेरी जन्मपरम्परा कहिए। गणधर कहते हैं कि विकसित वृक्षवाले और मालती से सुगन्धित मलयदेश में भद्रिलपुर में मेघरथ नाम का राजा था, जो इतना सुन्दर था, मानो पाँचवाँ कामदेव हो। उसकी चन्द्रमुखी पत्नी नन्दादेवी थी, जिसकी नखप्रभा से दिशाओं के मुख आलोकित थे। एक और वहाँ भूतिशर्मा नाम का ब्राह्मण था जो अपनी ब्राह्मणी कमला के स्तनों का लम्पट और रमण करनेवाला था। उनका मुण्डशालायन नाम का, बालाओं को चाहनेवाला अत्यन्त कामुक पुत्र था। तीर्थंकर शीतलनाथ के तीर्थ के उच्छिन्न होने पर लोगों का सुन्दर विवेक नष्ट हो चुका था। उसने भी जिनेन्द्र-वचनों का खण्डन करने तथा गौ और भूमि के दान की प्रशंसा करने के लिए काव्य (शास्त्र) की रचना कर राजा के पास उसकी व्याख्या की। उस मूर्ख राजा ने और किसी
(1) 1. ABPS पय पणतेप्पिणु । 2.5"कररूह | 3. A धम्मचक्कु । 4. B ता। 5. AHP सच्चहाय। 6. B"पुंगव in second hand. 7. Pविहसिय। 8. 5 भद्दलपुरे। 9. APS "कामुर। 10. B कमीयालोषणु। 11. S जाए।