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89.20.13 |
महाकाइपुप्फयंतबिरयउ महापुराणु
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भीसणपूयणघणरत्तलित्तु
घरु आय कायवहणेक्कचित्तु । उत्तुंगतुरंगमसिरकयंतु
जमलज्जुणभंजणमहिमहंतु। उप्पाडियमायावसहसिंगु
णित्तेईकयखयदिणपयंगु'। उड्डावियजउणासरविहंगु
करतिक्खणक्खणत्यियभुयंगु। धोरेउ धराधरधरणबाहु
कमलावल्लहु सिरिकमलणाहु। तुह जायउ तणुरुहु रिउविरामु पारायणु णवघणभसलसामु । तं णिसुणिवि सीसें देवईइ गुरु वंदिउ सुविसुद्धइ मईई। केहि मि लइयाई महव्ययाइं तहि केहिं मि पंचाणुव्बयाई । भो साहु साहु विच्छिण्णकम्म जिणु णेमि भणिज पच्छष्णधम्म ।
यत्ता-इय सोउं कहं भरहसुरमणिया"
णिसहा पहसिया सुकुसुमदसणिया" ॥20॥
इय महापुराणे तिसद्विमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुष्फयंतविरइए महाभब्दभरहाणुमण्णिए
महाकव्वे देवइयलएवसभायरदामोयर भवावलिबष्णणं णाम
एक्कूणणवदिमो परिच्छेउ समतो 189॥
के भारी वृद्ध वृक्षरूपी तीर जाल के लिए हुताशन है, ऐसा भयंकर एवं पूतना के स्तनरक्त से लिप्त तथा वध में एकमात्र चित्त रखनेवाला वह घर आया है। उत्तम अश्वों के सिरों के लिए कृतान्त, यमलार्जुन के वध से मही में महान्, मायावी वृषभ के सींग उखाड़नेवाला, प्रलयकाल के सूर्य को निस्तेज कर देनेवाला, यमुना सर के पक्षियों को उड़ानेवाला, अपने पैने नखों से साँप को नाथनेवाला, पर्वत के भार को उटानेवाला, लक्ष्मीपति, पद्मनाभ, शत्रु को विराम देनेवाला, नये मेघ और भ्रमर की तरह श्याम नारायण तुम्हारा पुत्र हआ। यह सनकर देवकी ने सविशद्ध मति से गरु को सिर से प्रणाम किया। किसी ने महाव्रत लिये, किसी ने वहाँ पर पाँच अणुव्रत लिये। स्थित धर्मरूप नेमिराज के द्वारा कथित, काम को नष्ट करनेवाला साक्षात्धर्म ठीक है, ठीक है।
धत्ता-इस प्रकार भरत के कुल में तथा कौरव वंश में उत्पन्न देवकी और नृपसभा कया सुनकर फूलों के समान अपने दाँतों से हँस पड़ी।
इस तरह त्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त, महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महाभष्य भरत द्वारा अनुमत
महाकाष्य का देवकी बलदेव और भाई सहित दामोदर-भवापती-वर्णन नाम का
नवासीयों परिच्छेद समाप्त हुआ।
4. A "पहणेक्क'"बहणेक्क" । 5. AS उत्तुंग तुरंगासुरकयंत; P उत्तुंगतुरंगासुरकर्यतु। 6. "वसहिसंगु। 7. णित्तेइयकम"। णित्तेकय । B. A 'वल्लहो। 9. Pघणघणः। 10. S पापणु धम्मु। 11. H भारह 1 12. A णिसह। 13. P कुसुम {omits सु)। 14. A "सभापरवणणं। 15.5 "भवायली।