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184 ] महाकपुष्फयंतविरयउ महापुराणु
[89.19.6 छह तणुरुह देवइगब्भि जाय लक्खणलक्खिय ते चरमकाय दरिसियसज्जणसुहसंगमेण
इंदाएसें णिय णडगमेण। वणिपरिणिहि अप्पिय भद्दणयरि कलहोयसिहरकोलंतनयरि। सिसु देवदत्तु पुणु देवपालु पुणु अणियदत्तु भुयबलविसालु । अण्णेक्कु वि पुत्तु अणीयपालु सत्तुहणु" जित्तसत्तु वि जसालु। जरमरणजम्मविणिवारणेण हूया रिसि केण वि कारणेण। पिंडत्थि' णयरि घरि घरि पइट्ट चिरभवतणुरुह पई माइ दिट्ठ। वियलियथणथपणे सित्त। देहु तें कज्जें तुह उप्पण्णु णेहु। पविल्लि जम्मि चलगरुड़केउ पेच्छवि सयंभु पहु" वासुदेउ । तवचरणजलणहुयकामएण बद्धउं णियाणु णिण्णामएण।
15 एही दावियवसुहद्धसिद्धि
आगामि जम्मि महुँ होउ रिद्धि ! घत्ता-कप्पि सुरो हुउ धुउ किसलयभुए। रिसि णिण्णामउ आयण्णहि सुए ॥19॥
(20) दुवई-कंसकढोरकंठमुसुमूरणभुयबलदलियरिउरहो'।
णिवजरसिंधगरुयजरतरुवरसरजालोलिहुयवहो' ॥छ॥ और कृशोदरी सेठानी हुई। देवकी के गर्भ से छह पुत्र उत्पन्न हुए। लक्षणों से लक्षित वे छहों चरम शरीरी हैं। सज्जनों के साथ शुभसंगम दिखानेवाले इन्द्र के आदेश से नैगम देवों के द्वारा उनका अपहरण किया गया और उन्हें, जिनके स्वर्णशिखरों पर विद्याधर क्रीड़ा करते हैं, ऐसे भद्रनगर में सेठ की पत्नी को सौंप दिया गया। शिशु देवदत्त फिर देवपाल । फिर विशालभुज अनीकपाल । और यश का आलय शत्रुघ्न और जितशत्रु। जरामरण और जन्म का निवारण करनेवाले वे किसी कारण से मुनि हो गये। आहार के लिए घर-घर में प्रवेश करते हए ये, हे आदरणीया ! तमने अपने पूर्वजन्म के पत्र देखे हैं। इसलिए झिरते स्तन से तम्हारी देह गीली हो गयी। और इसी कारण तुम्हारा स्नेह उत्पन्न हुआ। पूर्वजन्म में चंचल गरुड़ध्वजवाले राजा स्वयम्भू वासुदेव को देखकर, तप को ज्वाला में काम को आहत करनेवाले निर्नाम ने यह निदान बाँधा था कि सुभद्र सिद्धि को दरसानेवाली ऐसी ऋद्धि आगामी जन्म में मेरी हो। __घत्ता-हे किशलय बाहुघाली पुत्री ! सुनो, वह कल्पस्वर्ग में उत्पन्न हुआ, वहाँ से च्युत होकर वह निनामक मुनि हुआ है।
(20) जिसने कंस के कठोर कण्ठ को मसलनेवाले भुजबल से शत्रुओं को दलित कर दिया है, तथा राजा जरासन्ध
१. ] भागरि। 5. B सहारे। 7. । भुयबलि। 8. P सत्तुहण । 9. B पित्याए पुरि घरि। 10. Pघणयणे। II. ABS सित्तु।।2. ABS पुबिल्ल 1 13. A णिच्छेचि 5 पच्छेचि। 11. A सयपहु: B सरभु S सईयू । 15. P वासुएउ। 16. B Als. कप्पसुरो।
(20) 1. PS 'कटोर'। 2. PS जरसेंघ13. Bणरुब'।