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________________ 89.19.51 | 183 10 महाकइपुष्फयंतविग्य पहापुराणु इय णिसुणिवि चल परिचत्त' फारु संसार अगा: सरी भार। छ बि णिवणंदण' पावज्ज लेवि थिय मिच्छासंजमु परिहरेवि । सौ संखु वि सहुं णिण्णामएण पहायउ मुणिवरदिक्खामएण। सुव्वय पणवेप्पिणु संजईउ जायउ णंदयसारेवईउ ए सत्त वि दढपडिबद्धपणय अपणहिं मि जम्मि महुं होंतु तणय। इय णदयसइ बद्ध णियाणु को णासइ विहिलिहियउं विहाणु । कालें जंतें सयलई मुयाई दहमइ दिवि अमरत्तणु गयाई। सोलहसमुद्दभुत्ताउयाई पुणु तहिं होतई सव्वई चुयाई। सो संखणामु बलएउ जाउ रोहिणिहि गभि जायवहं राउ। घत्ता-छुहधवलियधरि धणपरिपुण्णए । मयवइदेसइ णयरि दसण्णए" ॥१४॥ ( 19 ) दुवई-जाया देवसेणराएण सुरा धणएविगब्भए। सा गंदयस' पुत्ति देवइ णामेण पसिद्धिया जए ॥छ!! वरमलयदेसि पुरि भद्दिलंकि पासायतुंगि विलियकलंकि। धणरिद्धिवंतु तहिं वसइ सेष्टि वइसवणसरिसु णामें सुदिटि। रेवइ तहु सेट्ठिणि अलयणाम' हूई पीणत्यणि मज्झखाम। हुआ है, इसलिए वासव की कन्या में अशान्ति का भाव है। ___ यह सुनकर चंचल विशाल संसार असार शरीरभार छोड़कर, छहों ही राजपुत्र संन्यास लेकर, मिथ्या संयम को छोड़कर स्थित हो गये। निर्नाम के साथ शंख ने भी मुनिवर के दीक्षामृत में स्नान किया। सुब्रता नाम की आर्या को प्रणाम कर नन्दयशा और रेवती धाव भी आर्यिका बन गयी। 'दृढ़ प्रतिबद्ध प्रेमवाले ये सातों दूसरे जन्म में भी मेरे पुत्र हो।' नन्दयशा ने यह निदान किया। विधि के लिखित विधान को कौन नष्ट कर सकता है ? समय आने पर सब मृत्यु को प्राप्त हुए वे दसवें स्वर्ग में देव हुए। सोलह सागर आयु भोगने के बाद, फिर वे वहाँ से च्युत हुए। शंख बलदेव हुआ-रोहिणी के गर्भ से यादवों का राजा। पत्ता-सफेद घरों से युक्त धन से परिपूर्ण मृगावती देश के दशार्ण नगर में, (19) वह नन्दयशा देवसेन राजा की धनदेवी के गर्भ से पुत्री हुई, जो जग में देवकी नाम से प्रसिद्ध है। श्रेष्ठ मलय देश में भद्रित नाम की नगरी है, जो प्रासादों से ऊँची और कलंकों से रहित है। उसमें कुबेर के समान धन और ऋद्धि से सम्पन्न सुदृष्टि नाम का सेठ निवास करता है। रेवती उसकी अलका नाम की पीनस्तनी 9. A परिवत्तपारू। 10.5 सरीरु। 1.5 नृयणंदण : 12. A "परिबद्ध । 3. A दसई P दसमए। 14. Pदसण्णवे। (19) I. Pणंदजस । 2. A"पहिलदेसे । ५. Pणा। 4. B"खामु।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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