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________________ 182 महाकपुप्फयंतविरयउ महापुराणु गठ उज्जतहु" संणासु करिवि अहमिंदु इंदु ज्वरिल्लठाणि रसपंडिउ तयइ परइ पडिउ काले "दुक्खणिक्खविउ 12 खामु इह मलयसि वित्थिष्णणीडि तहिं णिवसइ गहवइ जक्खदत्तु जायउ कोक्किउ जक्खाहिहाणु मुणि समभावें जिणु सरिवि मरिबि । संभूयउ अवराइयविमाणि । कम्मेण ण को भीमेण णडिउ । परयाउ विणिग्गउ" अमयणामु । विक्खाया गामि पलासकूडि । पिय जक्खदत्त सो ताहं पुत्तु । -अण्णेकु वि जक्खिलु सउलभाणु । पत्ता - गरुव णिद्दओ दुक्कियमागिओ । [89.17.14 राहु पपाशु तहिं जगि" जाणिओ ॥ 17 ॥ ( 18 ) दुबई - अण्णहिं दिणि दयालुपडिसेह कए वि सधवलु ढोइओ । सयो णिएण पहि जंतहु उदयहु उवरि चोइओ ॥७॥ फणि मुख हुउ सेयवियापुरीहि ' वासवपत्धिवहु वसुंधरीहि । रायाणियाहि गंदयस धूय कड़वणियतणुलायण्णरूम्' । भावरवयणें उवसंतभाऊ णिक्किउ णंदयसहि* पुत्तु जाउ । गिण्णामउ ओहच्छइ ण भति तें वासवतणयहि मणि अखति । 15 20 5 पर जाकर संन्यास ग्रहण कर तथा समभाव से जिन भगवान् का नाम लेकर और मृत्यु को प्राप्त होकर, अपराजित विमान के ऊपरी भाग में वे अहमेन्द्र इन्द्र हुए। वह रसपण्डित ( रसोइया) तीसरे नरक में गया। कर्म के द्वारा कौन नहीं नचाया जाता ? समय पूर्ण होने पर दुःख से पीड़ित और दुबला वह अमृत रसायन रसोइया नरक से निकला। यहाँ मलय देश में विस्तृत घरोंवाले पलाशकूट गाँव में यक्षदत्त नाम का गृहस्थ रहता था। उसकी यज्ञदत्ता नाम की प्रिया थी । वह (अमृत रसायन) उन दोनों का यक्ष नाम का पुत्र हुआ। उनके कुल में सूर्य के समान एक और यक्षिल नाम का पुत्र था। घत्ता - बड़ा भाई निर्दय और पाप को माननेवाला था। जबकि छोटा भाई दुनिया में दयालु समझा जाता था । ( 18 ) एक दिन दयालु लोगों के मना करने पर भी उस निर्दय ने बैल सहित अपनी गाड़ी रास्ते में जाते हुए सांप पर दौड़ा दी। साँप मरकर श्वेताविका नाम की नगरी में वासव नाम के राजा की रानी नन्दयशा की कन्या रूप में उत्पन्न हुआ जिसके शरीर के रूप और सौन्दर्य की कवि प्रशंसा करते हैं। अपने छोटे भाई कं समझाने पर उपशान्त भाव को धारण करनेवाला निरनुकम्प नन्दयशा का पुत्र हुआ। वहाँ निर्नाम बैठा B. P उज्जैऩहो । to, A सभायें । 11. 5 दुक्खु । 12. 13 णिवरवविय। 19. B विणग्गउ। 14 B मलह 15. APS गरुओ। 16. AS जगे; B जण । ( 18 ) 1. A डिसेवले । 2. P संयविमार 13. P धूव । 4. 5. S मिक्किनु । 6. P "जस पुत्तु। 7. B उहइच्छह in first hand and तुह इच्छछह in second hand: 5 ओइ Als. एहु अच्छ against Mss. 8 $ वासतणयहि, umits व
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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