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________________ 1801 पहाकइफुप्फयंतविरयउ महापुराणु [ 89.15.16 घत्ता-संखें बोल्लिउं महु भणु रंजहि । आयहि बंधव तुहं सहुं" भुजहि ॥15॥ (16) दुवई-ता' भुजंतु पुत्तु अवलोइवि सरसं गोडिभोयणं । ___ वयणं रोसएण पंदजसहि जायं तंबलोयण ॥छ॥ पाई चतियाइ चरणयलें हउ असहतियाइ। सोयाउरमणु संखेण दिछु एमेव' को वि जणु कहु वि इछु । तं दुक्खु सदुक्खु व मणि वहंतु। दुत्थियवच्छलु महिमामहंतु। अण्णहिं दिणि बहुकिंकरसएहिं । सहं णरणाहें हयगयरहेहि। गउ सो णिण्णामु वि विस्सरामु । दुमसेणमहारिसिणमणकामु। गुणसभाबडु मंदिर जोईसरु जोयसुद्ध। संखें पुच्छिउ णंदयस देव णिण्णामहु विणु कज्जेण केम। रूसइ परमेसरि' कहउ" तेम हउँ जाणमि पयडपयत्यु जेम। 10 तं णिसुणिवि अवहिविलोयणेण बोल्लिउं तवसंजमभायणेण। सोरठ्ठदेसि गिरिणयरवासि चित्तरहु राउ आसत्तु मासि। तहु केरउ विरइयपावपंकु । सूचारउ अमयरसायणंकु। पहुणा जिभिदियलपडेण12 पलपयणवियक्खणु मुणिवि तेण। यत्ता-शंख ने कहा-मेरे मन का रंजन करो। आओ भाई ! तुम मेरे साथ भोजन करो। (16) पुत्र को सरस गोष्ठीभोजन करते हुए देखकर, नन्दयशा का मुख और नेत्र क्रोध से लाल हो गये। सैंकड़ों दुष्ट शब्द कहती हुई और सहन नहीं करती हुई वह उसे लात से आहत कर देती है। शोकातुर बालक को शंख ने देखा। (वह सोचता है) इस प्रकार किसी भी मनुष्य का इष्ट होना व्यर्थ है। उस दुःख को मन में अपना दुःख समझते हुए, दुःस्थितों के लिए वत्सल और महिमा से महान् वह, एक दिन सैकड़ों अनुचरों, घोड़ों, हाथियों और राजा के साथ विश्व मनोहर द्रुमसेन महामुनि को नमस्कार करने की कामना से गया। निर्नाम भी यहाँ गया। गुणवान् और संगतिभाव से प्रबुद्ध करनेवाले योगशुद्ध योगीश्वर को उन्होंने वन्दना की। शंख ने पूछा-हे देव ! नन्दयशा बिना कारण निर्नाम पर क्रोध क्यों करती है ? बताइए जिससे हम प्रकट पदार्थ की तरह स्पष्ट रूप से जान सकें। यह सुनकर तप और संयम के पात्र, तथा अवधिज्ञानरूपी लोचनवाले मुनि ने कहा- सौराष्ट्र देश के गिरनार नगर का निवासी राजा चित्ररथ मांस में आसक्त था। उसका पापपंक में सना अमृत-रसायन नाम का रसोइया था। जिस्या इन्द्रिय के लोभी उस राजा ने मांस-पाक-विज्ञान में उसे विशेषज्ञ मानकर, उससे :2. 1 स्टं: सह। (16) | BAIR हो; PS तो। 2.5 पत्तु। Aणंदजसहो; 85 गंदयसहे। 4. BS एमेय। 5. AS तदुक्खु against Mss :P सक्नु नाव: ?.AS रहरुमागहें। 6. Pणंदजस। 9.8 परमेसरू। 10. AN कहहिँ: B कहह। ।।, B पईइ'। 12. APS जीहिदिय । G. D वि।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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