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________________ 89.15.15] पहाकइपुप्फवंतविरयत महापुराणु [ 179 घत्ता-सग्गि क्उत्थए सामण्णा सुरा। ते सजायया सत्त वि भायरा ॥14॥ ( 15 ) दुवई-सत्तसमुद्दमाणु परमाउसु मुंजिवि पुणु वि णिवडिया। कालें इंद चद धरणिंद वि के के णेय' विहड़िया ॥छ। इह भरहखेत्ति सुपसिद्धणामि कुरुजंगलि देसि विचित्तधामि । गयउरि धणपीणियणिच्यणीसु वणिणाह सेयवाहण णिहीस्। बंधुमइ घरिणि तहि धम्मकंखु हुउ सुउ सुभाणु णामेण संखु । तहिं पुरवरि राणउ गंगदेउ णंदयसपरिणिमणमीणकेउ। उप्पण्णउ णंदणु ताहं गंगु गंगसुरु अवरु णावइ अणंगु। पुणु गंगमित्तु पुणु गंदवाउ पुणरवि सुणंदु संपुण्णकाउ। पुणु णंदसेणु' गिद्धगराय अवरोप्परु णेहणिबद्धछाय। अण्णम्मि गब्भि संभूइ राउ उब्वेइउ वर णंदणु म होउ' । मा एहउ महुं संतावयारि डहु पावयम्मु संतोसहारि। उप्पण्णउ रेवइधाइयाइ रायाएसें संचोइयाइ। बंधुमइहि बालु विइण्णु गंपि रक्खइ माणुसु भवियदु किं पि। णिण्णामउ कोक्किउ ताइ सो वि अण्णहिं दिणि उववणि सह भमेवि। छ वि ते भावर भुंजति जाम णिण्णामु पराइउ" तहिं जि ताम। पत्ता-वे सातों भाई चौथे स्वर्ग में सामानिक जाति के देव हुए। (15) सात सागर प्रमाण आयु भोगकर, वहाँ से वे च्युत हुए। काल के द्वारा इन्द्र, चन्द्र और धरणेन्द्र भी, कौन ऐसा है जो विखण्डित नहीं होता ? इस भरतक्षेत्र में प्रसिद्ध कुरुजांगल नामक देश में विचित्र गृहोंवाला गजपुर है। उसमें धन से दरिद्रों को नित्य प्रसन्न करनेवाला निधीश श्वेतवाहन नाम का सेठ है। उसकी बन्धुमती गृहिणी है। उत्तम सूर्य के समान तथा धर्म की आकांक्षा रखनेवाला उसका शंख नाम का पुत्र हुआ। उसी नगरी में गंगदेव नाम का राजा हुआ, जो अपनी गृहिणी नन्दयशा के मन का कामदेव था। गंग उसका पुत्र हुआ। और दूसरा गंगदेव जो मानो कामदेव था। फिर गंगमित्र और नन्द, फिर पुण्यशरीर सुनन्द एवं स्निग्धराग नन्दसेन । वे आपस में बहुत प्रेम से बँधे हुए थे। नन्दयशा के एक और गर्भ रह जाने पर राजा उद्विग्न हो गया कि अच्छा हो कि पुत्र न हो। यह मुझे सन्तापदायक न हो, सन्तोष हरण करनेवाला पापकर्मा यह मुझे न जलाए। बालक उत्पन्न होने पर राज्यादेश से प्रेरित रेवतीधाय ने जाकर उसे बन्धुमती को दे दिया। कोई-न-कोई भवितव्य मनुष्य की रक्षा करता है। उसने उस शिशु को निर्नाम कहना शुरू कर दिया। एक दिन उपवन में घूमकर जब वे छहों भाई भोजन कर रहे थे, तब निर्नाम वहाँ पहुँचा। 11. B संजाया। (15) 1. A ण य। 2. Pघरगि। 3. p गांदजसः। 4. AS दिसेणु। 5.5"ठाय। 6.5 संभूये। 7. Aadds after this : जड हुबह एहु व लयहो जाउ; K writes it but secores it off... दह: Pइछु। 9.5 मवियत्यु(:)। 10. Pomits छवि। 11. P परायउ। 15 २. शाराज ताम
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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