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[89.13.19
महाकइपुमायंतविरयउ महापुराणु धत्ता-ताहिंतो चुया धादइसंडए।
भरहे" खेत्तए वरतरुसंडए ॥13॥
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दुवई-णिच्चालोयणयरि' अरिकरिकुंभुद्दलणकेसरी।
___पत्थिर चित्तबूल तह प्रियपणइणि णामें मणोहरी ॥७॥ चित्तंगउ जायज पढमपुत्तु धर्यवाहणु पंकयपत्तणेत्तु। अण्णेक्कु गरुलवाहणु पसत्थु मणिचूलु पुप्फचूलु वि महत्थु । पुणु णंदणचूलु वि गयणचूल तेत्यु जि दाहिणसेढिहि विसालु । मेहउरें धणंजउ पहु हयारि सच्चसिरि णाम तहु इट्टणारि। कालेण ताइ णं मयणजुत्ति धणसिरि णामें संजणिय पुत्ति। तेत्धु जि णिण्णासियरिउपया आणंदणयरि हरिसेणु राउ। सिरिकंत कंत हरिवाहणक्नु सुउ संजायउ कमलाहचक्छु। साकेयणयरि णं हरि सिरीइ सोहंतु महंतु सुहंकरीइ। तहिं चक्कवट्टि पुरि पुष्पदंतु तह सुठ्ठ दुट्ठ तणुरुहु सुदत्तु । पायेण तेण णववेणुवण्ण हरिवाहणु मारिबि लइय कण्ण। सुविरत्तचित्त संसारवासि भूयाणंदहु जिणवरह पासि। तं पेच्छिवि ते चित्तंगयाइ मुणिवर संजाया जइणवाई।
अरिमित्तवग्गि होइयि समाण अणसणतवेणं' पुणु मुइदि पाण। यत्ता-वहाँ से च्युत होकर, धातकीखण्ड द्वीप में सुन्दर वृक्षों के समूहवाले भरतक्षेत्र में
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नित्यालोक नगर है। उसमें शत्रुरूपी गजों के कुम्भों को विदारित करनेवाला राजा चित्रचूल (चन्द्रचूल) था। उसकी मनोहरा नाम की देवी थी। उसका पहिला पुत्र चित्रांगद हुआ। फिर कमल-पत्र के समान ध्वजवाहन। एक और प्रशस्त गरुड़वाहन हुआ। महार्थवाले मणिचूल और पुष्पचूल भी उत्पन्न हुए। फिर नन्दनचूल और गरुड़चूल हुए। वहीं विजयाध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में विशाल मेघपुर में शत्रु का नाश करनेवाला राजा धनंजय था। उसकी सत्यश्री नाम की दृष्ट स्त्री धी। समय बीतने पर उसे कामदेव की युक्ति के समान धनश्री नाम की पुत्री हुई। वहीं शत्रु के प्रताप को नष्ट करनेवाला हरिसेन नाम का राजा आनन्दनगरी में उत्पन्न हुआ। जिस प्रकार इन्द्र लक्ष्मी से शोभित है, उसी प्रकार प्रीतिकरी पत्नी से शोभित महान् चक्रवर्ती पुष्पदन्त अयोध्या नगरी में शोभित था। उसका दुष्टपुत्र सुदत्त था। उस पापी ने नववेणु के समान वर्णवाले हरिवाहन को मारकर उसकी कन्या ले ली। यह देखकर चित्रांगद आदि भाई संसारवास से विरक्तचित्त होकर भूतानन्द जिनवर के पास जैनवादी मुनि हो गये। शत्र और मित्र में समान होकर और अनशन तप के द्वारा उन्होंने अपने प्राण छोड़ दिये। 1. नाईतो। ।।. [ भारहे धिपः।
(14) 1.5 णिचानाए । 2. ABP मात ; S"कंभयलदलण् । 3. 5 पत्यिबु । 4. AP तहो पणइणि सई गामें। 5. 5 सरल | 6. F णंदणु 1117A मेह) SHETRA लाडू मटर माण। 4. A ताण। 10. B पाण।