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महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु तणमिव मण्णिउं तं चोरदबु मंगीविलसिउं वज्जरिउं सब्बु । खलमहिलउ किं किर णउ कुणंति भत्तारु जारकारणि हणंति । तियचरि' कहतें भायरेण छिण्णंगुलि दाविय ताहं तेण । तं णिसुणिवि मेल्लिवि मोहजालु सरकरिहरि' दयदाढाकरालु । वसिकिय पंचेंदिय णियमणेहिं णिवेइएहिं वणिणंदणेहि।
आसंघिउ धम्ममहामुणिंदु तउ लइउ तेहिं पणविधि जिणिंदु । जिणदत्तहि खतिहि पायमूलि उवसाभियभवयरसल्लसूलि। वउ लइयउं लहुं तणुअंगियाइ णियचरियविसण्णा मंगियाइ। हिंतालतालतालीमहंति
उज्जेणीबाहिरि काणणति। अच्छति जाम संपुग्णतुट्टि परमेट्टि पणासियमोहपुष्टि 1 अंचिवि णवकमलहिं सच्चदिट्टि संपत्तु ताम सो वज्जमुट्ठि। पुच्छियउं तेण णिवसह वणम्मि पव्वज्जई' किं णवजोव्वणम्मि। मंगीवियांरु तवचरणहेउ वज्जरिउं तेहिं तं मयरकेउ । विद्धसिवि लइयउं रिसिचरित्तु" तहु गुरुहि पासि गुणगणपवित्तु । सोहम्मसग्गि सोहासमेय
चारित्तयंत चंदक्कतेय। संणासु. करेप्पिणु लद्धसंस सुर जाया सत्त वि तायतिस।
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परस्त्री की निन्दा की। उस चोरी के धन को उसने तृण के समान समझा और उसने मंगिया की सारी करतूत बतायी। दुष्ट महिलाएँ क्या नहीं करती , यार के लिए वे अपने पति की भी हत्या कर देती हैं। स्त्रीचरित कहते हुए उसने अपने भाइयों को कटी हुई अपनी अंगुलियाँ बतायीं।
यह सुनकर और मोहजाल छोड़कर नियमशील, वैराग्य को प्राप्त वणिकपुत्रों ने पाँचों इन्द्रियों को वश में किया और कामरूपी गज के लिए सिंह के समान तथा भयंकर दाढ के लिए दया के आश्रय-स्थान धर्म नामक महामुनि की उन्होंने शरण ली। जिनेन्द्र को प्रणाम कर उन्होंने तप ग्रहण कर लिया। आर्या जिनदत्ता के, संसाररूपी कर की फाँस को नष्ट करनेवाले पादमूल में, अपने चरित से दुःखी होकर तन्वंगी मंगिया ने भी व्रत ग्रहण कर लिये। हिन्ताल, ताल और ताड़ी वृक्षों से महान, उज्जैन के बाहर वन के भीतर जब सम्पूर्ण तुष्टिवाले और मोह की पुष्टि को नष्ट करनेवाले सत्यदृष्टि मुनि विराजमान थे, तब वह वजमुष्टि वहाँ पहुँचा। उसने उनकी नवकमलों से पूजा की और पूछा-आप वन में क्यों निवास कर रहे हैं, आपने नवयौवन में वैराग्य क्यों धारण किया ? उन्होंने उत्तर दिया-मंगिया का विकार तपश्चरण का कारण है। फिर उसने भी काम को नष्ट कर, उसके गुरु के पास गुणगण से पवित्र मुनित्त्व स्वीकार कर लिया। चारित्र्य से युक्त, चन्द्रार्क के समान तेजवाले और शोभा से युक्त, प्रशंसा प्राप्त करनेवाले वे सातों भाई संन्यास धारण कर सौधर्म स्वर्ग में देव हुए।
3. Als. तृय: 5 प्रियचरिउं। 4. A सरहरिकरिहयदाहा। 5. K यर। ६. S तणुयोग। 7. A संपण्णबुद्धि; DPS संपण्णतुहि। 8. AP मोहबुद्धि । 9. APS पावज्जए। 10, Als. तें against Mss. II. A तवचरित्तु। 12. B तायतीस ।