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________________ 176 ] महाकाइपुष्फयंतविरवड महापुराणु [89.12.5 इच्छिवि परणररइरसपवाहु सा ताइ जाम किर हणइ णाहु। ता वणिसुएण उड्डिङ सबाहु णित्तिंसु पडिउ णं कालगाहु। अंगुलि खांडेय णं पावबुद्धि कम्मुवसमेण वष्टिय विसुद्धि । चिंतवइ होउ माणिणिरएण दरिसावियधणजीवियखएण। दुग्गंधु' पुरधिहिं तणउ देहु मणु पुणु बहुकवडसहासगेहु। रप्पिज्जइ कि किर कामणिीहिं वइसियमंदिर चूडामणीहि । 10 किं वयणे लालाणिग्गमेण अहरें किं बल्लूरोवमेण। कि गरुयगंइसरिसेण तेण माणिज्जतें घणथणजुएण। परिगलियमुत्तसोणियजलेण किं किज्जइ किर सोणीयलेण। पररत्तिइ गुणविद्दावणी एत्यंतरि दढमायाविणीइ। ... मई खग्गु मुक्कु भीयाइ माड वरइत्तहु उत्तर दिण्णु ताइ। पत्ता-घेत्तु परहणं सुठु अकायरा'। ताम पराइया ते तहिं भायरा ||12|| (13) दुवई-दिगं तेहिं तस्स दविणं तहिं तेण' वि तं ण इच्छियं। हिंसाअलियवणचोरत्तणपरया दुगुछियं ॥छ॥ करना स्वीकार कर लिया। ठीक इसी अवसर पर वज्रमुष्टि आया और उसने कान्ता के हाथ में तलवार की मूठ दे दी। परपुरुष के रति-रसप्रवाह को चाहती हुई वह, उस तलवार से जब तक अपने पति पर वार करती है तब तक वणिक पत्र ने अपना हाथ उठाया, उस पर तलवार इस प्रकार पड़ी जैसे काल का ग्राह हो। उसकी अँगुलियों कट गयीं, मानो पापबुद्धि खण्डित हुई हो। कर्म का उपशम होने से उसकी चित्तशुद्धि हुई। वह सोचता है कि जिसने धन और जीवन का नाश दिखाया है, ऐसे स्त्रीप्रेम से क्या ? शरीर दुर्गन्धयुक्त होता है। फिर मन हजार कपटों का घर होता है। माया-मन्दिर की चूड़ामणि स्त्रियों के द्वारा क्यों आक्रमण किया जाता है ? लार गिरते हुए मुख से क्या ? सूखे हुए माँस के समान अधरों से क्या ? भारी गण्डस्थल के समान सघन स्तन-युगल मानने से क्या ? मूत और रक्तजल झरनेवाले श्रोणीतल से क्या किया जाय ? दूसरे में अनुरक्त, गुणों को नष्ट करनेवाली, दृढ़माया से विनीत उसने अपने पति को उत्तर दिया-भयभीत मुझसे तलवार छूट गयी।" वत्ता-अत्यन्त साहसी उसके भाई परधन को लेने के लिए वहाँ आये। (13) उन्होंने उसका धन उसे दिया, वहाँ उसने भी वह धन नहीं चाहा। उसने हिंसा, झूठ वचन, चोरी और । स्नियों का 2. इंछिय। ।खयेग। 4. 1 दुग्गंध। BAPS मंदिर | BAP पित्तं। 7.8 अकारया। 8. D तहिं ते। (13) 1. B लिण। 2. B परयाई।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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