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89.12.41
महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
[ 175 ता तेण दिठु तहिं धम्मणामु रिस दूसहतवसंतावखामु। ओबाइउं भासिङ तासु एम जइ पेच्छमि पिययम कह व देव। चलचंचरीयधुयकेसरेहिं
तो पइं पुज्जमि इंदीवरेहिं। इय भणिवि भमंते तहिं मसाणि अणवरयदिण्णणरमासदाणि।
10 दिट्ठी पणइणि णासियगरेण" मुणिवरतणुपवणोसहभरेण। जीवाविय जाव सचेयणगि परिमिट्ठ रहगें णं रहंगि। रमणीदसणपुलइयसरीरु
गउ कमलह" कारणि कहिं मि धीरु । गइ पिययमि मंगीहिययथेषु कवडेण पहुक्कउ सूरसेणु।
पत्ता-तेण मणीहरं तहिं तिह बोल्लियं । जिह हियउल्लयं तीइ विरोल्लियं ॥11॥
(12) दुवई-परपुरिसंगसंगरइरसिया मयणवसेण णीयओ।
महिलउ कस्स होति साहीणउ बहुमायाविणीयओ छ। परिहरिवि चिराउ घारू रमणु . पडियाउने सहुँ तीइ रमणु' तहिं अवसरि आयउ वजमुट्टि कंतहि करि अप्पिय खग्गलहि।
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शोक प्रकट करता हुआ तथा श्मशानभूमि देखता हुआ वह घूमता है। इतने में वह दुःसह तपसन्ताप से क्षीण, धर्म नामक मुनि को वहाँ देखता है। उनकी सेवा करते हुए उसने इस प्रकार कहा-दे देव । यदि किसी प्रकार मैं अपनी प्रियतमा को देख सकूँ, तो मैं चंचल भ्रमरों से काँपती केशरवाले इन्दीवरों से आपकी पूजा करूँ ?
यह कहकर उस मरघट में, जिसमें अनवरत नरमांस का दान दिया जाता है, घूमते हुए, उसने प्रणयिनी को देखा। जहर को नष्ट कर देनेवाली, मुनिवर के शरीर की हवारूपी औषधि को धारण करनेवाले उसने उसे जीवित कर लिया। वह सचेतन अंगोंवाली हो गयी, मानो चकवे ने चकवी को जीवित कर लिया हो। पत्नी के दर्शन से पुलकित-शरीर वह धीर, कमलों के लिए कहीं गया। प्रियतम के चले जाने पर मंगिया के हृदय का चोर सूरसेन कपटपूर्वक वहाँ आ पहुँचा। घत्ता-उसने वहीं इतनी सुन्दर बातें कीं कि जिससे उसका हृदय भग्न हो गया।
(12) परपुरुष के संग रति का आस्वाद लेनेवाली, कामदेव के द्वारा ले जायी गयी महिला भला किसी होती है ? वहुमाया से विनीत वे स्वाधीन होती हैं। अपने पुराने सुन्दर पति को छोड़कर, उसने उसके साथ रमण
५ B थि। ५. महंते; but notes ap भयंते चा पाठः। I0. A adds after this : अपलोइवि परबलरिउमरण। 1. AS परिमट्टः । पइमदन। 12. "कमलहो। 19. AP वीरु।
(12) I. H गमणु।