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________________ 1741 महाकइपुष्फयंतविरवड महापुराणु [89.10.7 10 तुह जोग्गी चलमहुयररवाल मई णिहिय कलसि वरपुष्फमाल । अमुणतिइ गइ असुहारिणीहि पच्छण्णविरुद्धहि वइरिणीहि ।। बालाई कुभि करवलु णिहित्तु उद्धाइउ फणि चलु रत्तणेत्तु । हा हा करति सा खद्ध तेण णिवडिय महियलि मुच्छिय विसेण। तणवेंढई वेढिवि पिहियणयण गयकायतेय ‘मजलंतवयण। पेसुण्णसलिलसंगहसरीइ घल्लिय पिज्वणि पइमायरीइ। घत्ता-तावाओ पिओ भणइ सुगिया। कहिं सामगिया अब्बो मंगिया ॥10॥ दुबई-कहियं अंबिवाइ विसहरदादागरलेण घाइया। पुत्तय तुज्झ' घरिणि खयकालमुहे विहिणा णिवाइया' ॥छ॥ अम्हेहिं मोहरसपरवसेहिं दड्डी ण जीवियासावसेहिं। घल्लिय कत्थइ दुग्गंतलि | पेयग्गिजालमालाकरालि। ता चल्लिउ सो संगरसमत्यु उक्खायतिक्खकरवालहत्यु। हा' हे सुंदरि परिसोयमाणु । परिभमइ पेयमहि जोवमाणु । कोमल भुजाओं से उसका आलिंगन किया और उसका मन जानकर बोली-चंचल भ्रमरों के शब्दों से युक्त उत्तम पुष्यों की माला मैंने कलश में रख दी है। __ प्राणों का हरण करनेवाली, प्रच्छन्न रूप से विरुद्ध, दुश्मन सास की चाल को न जाननेवाली बाला ने घड़े में हाथ डाला। चंचल और लाल आँखोंवाला साँप दौड़ा और उसे उसने काट खाया। हाहाकार करती हुई वह विष से मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़ी। जिसकी शरीर की कान्ति जा चुकी है, मुकुलित मुख और बन्द आँखोंवाली उसे घास के वेष्टन से ढंककर, दूष्टता रूपी जल संग्रह की नदी, पति की यात्रा के द्वारा मरघट में फेंक दिया गया। घत्ता-इतने में पुत्र वज्रमुष्टि आकर पूछता है-हे माँ ! श्यामांगी अच्छी मंगिया कहाँ है ? माता ने कहा विषधर की डाढ़ों के जहर के आघात से, हे पुत्र ! तुम्हारी गृहिणी विधाता ने क्षयकाल के मुख में डाल दी है। मोहरूपी रस के वशीभूत होकर, उसके जीवित होने की आशा के कारण हम लोगों ने जलाया नहीं, बल्कि प्रेतों की ज्वालमाला से कराल किसी दुर्गम वन के भीतर फिकवा दिया है। तब संग्राम में समर्थ वह अपनी तीखी तलवार हाथ में उठाए हुए चला। 'हाय ! हे सुन्दरि', इस प्रकार i. AIPS बालए कुंभे। 7. A चलरतः। ४. भणति। 9. A तणुदिपवेदिए: HAIs तणनिए बेद्विवि: Pणयदिए। 10. A तापापउ; B ताबाद। (11) ], APS तुन्छु। 2. Pघरणि। 3. A गिवेइया। 1. A उक्तव": Pomits this foot. S. ABPS हा हा हे सुंदरि सोयमाणु। 6. As थिया"; । चिहा। 2. APS जोयमाणु।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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