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________________ ܀ ? !. 89.10.6] महाकपुप्फयंतविरयज महापुराणु गिद्धाडिय राएं पुरखराउ ते गय अवति णामेण देसु तहिं संपत्ता रवणिहि मसाणु संणिहिउ तेत्धु सो सूरकेज तहिं चोर किं पि चोरंति जाम पुरपहु वसद्धउ तासियारि वप्पसिरि घरिणि सिसुहरिणदिट्ठि घत्ताT- विमलतणूरुहा रइरसवाहिणी । णामें मंगिया तहु पियगेहिणी | 19 |1 ( 10 ) मयपरवस णं करिवर सराउ । उज्जेणिणयरु मणहरपएसु । जुज्झतकुद्धसिवसाणठाणु । अवर वि पट्ट पुरु चवलकेछ" । अक्कु कहंतरु होइ ताम । सहसभडु भिच्चु तहु दढपहारि । तहि तणुरुहु णामें वज्जमुट्ठि । दुबई - तें' सहुं पत्थिवेण महुसमयदिणागमणि वणं गया । जा कौलंति किं पि सव्वाई वि ता पिसुणा सुगिद्दया । छ । । आरुट्ट दुट्ठ चरइत्तमाय सुकुसुममालइ सहुं अइमहंतु ससिमुहि छउओयरि मज्झखाम आलिंगिय कोमलयरभुयाइ मुहि णिग्गय णउ कडुययर वाय । घडि धित्तु सप्पु फुक्कार' देंतु । संपत्त सुण्ह णवपुप्फकाम । म जाणिव बोल्लिउं सासुवाई | [ 173 10 1. APS गय ते। 5. 5 "पवेसु । 6. 13 घवकेट 7. ढुक्कु ताम । (10) 1. ABP ते सह 2 H कडुइयवर P क ुअयर 3. A फुंकारु। 4. B खामोअरिः । तुच्छोयरि । 5. A 'जाणेविणु बोल्लिउं । 5 नगर से निकाल दिया, मानो तालाब से मतवाले हाथी को निकाल दिया हो। वे अवन्ती नाम के देश में चले गये । उत्तम प्रदेश उज्जैन नगरी में पहुँचे। वहाँ वे रात में, जो क्रुद्ध सियारों और कुत्तों के युद्ध का स्थान है, ऐसे मरघट में पहुँचे। सूरकेतु वहीं जाता है। दूसरे भी धवल पताकाओं वाले नगर में प्रवेश करते हैं। जब तक वे वहाँ कुछ चोरी करें, तब तक वहाँ एक और कथा घट जाती है। शत्रुओं को त्रस्त करनेवाला नगरराजा वृषभध्वज था । उसका दृढ़प्रहार नाम का सहस्रभट अनुचर था। उसकी शिशुहरिणी के समान नेत्रवाली वपुश्री नाम की पत्नी थी। उसका पुत्र वज्रमुष्टि था । धत्ता - विमल की पुत्री, रतिरस की नदी मंगिया नाम की उसकी गृहिणी थी । ( 10 ) वसन्त के दिनों के आगमन पर उस राजा के साथ वे लोग वन गये। जब वे वहाँ कीड़ा कर रहे थे, तभी क्रूर, दुष्ट और निर्दय वप्रश्री ( वरदत्त की माँ, मंगिया की सास ) क्रुद्ध हो उठी। उसके मुँह से कड़बी बात भर नहीं निकली, लेकिन पुष्पमाला के साथ उसने अत्यन्त लम्बा फुफकारता हुआ साँप घड़े में रख दिया । चन्द्रमुखी, कृशोदरी, मध्यक्षीण, नवपुष्प की इच्छा रखनेवाली बहू उसके पास आयी। सास ने अपनी
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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