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89.8.7]
महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराण
गिच्चहु किर' कहिं उप्पत्ति मच्चु जइ एक्कु जि तइ को सग्गि सोक्खु" जइ : रविवारु भति णिक्किरियहु कहिं करणई हवते' जर सिक्वसु हिंss भूयसत्यु
जंप जणु रइलंपडु असच्चु । अणुहुंजइ गरइ महंतु दुक्खु । तो: किं लब्भइ मइविहाउ । कहिं पयइबंधु जत्ति विवति । तो कम्मकंडु " सयलु विणिरत्यु |
घत्ता - जइ अणुमेत्तउ जीवो एहउ । तो सज्जीवउ किह करिदेहउ ॥ 7 ॥ (8)
दुवई - जीवु' अणाइणिहणु गुणवंत सुहुमु सकम्मकारओ । भोत गतमेत्तु रयचत्तउ उडाई भडारओ ॥ छ ॥ आयण्णिवि जिणवरभासियाई । सम्मत्तु' लइउ पारायणेण । अवरेहिं लइय णिग्गंधदिक्ख । णिव्वूढई परिपालियदयाई । वरदत्तु पपुच्छिउ देवईइ ।
इय वयणई सवणसुहासियाई बलएवें गुणहरिसियमणेण अरहंत केरी परम सिक्ख अवरेहिं चारुसावयवयाई एत्यंतर सुरगयवरगईइ
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लेती है ? रति के लम्पट लोग असत्य कथन करते हैं। यदि आत्मा एक है, तो स्वर्ग में सुख का अनुभव और नरक में दुःख का अनुभव कौन करता है ? यदि यह कहा जाये कि 'चेतना' भूतों (चार महाभूतों) का विकार है, तो फिर उनमें बुद्धि का विभाजन कैसे होता है ? निष्क्रिय है तो इन्द्रियाँ किस प्रकार होती हैं ? फिर, प्रकृतिबन्ध की युक्ति किस प्रकार सिद्ध होती है ? यदि भूतसमूह शिव के अधीन होकर घूमता है, तो समूचा कर्मकाण्ड व्यर्थ है ?
पत्ता -- यदि यह जीव अणुमात्र है, तो हाथी का समूचा शरीर सचेतन कैसे है ?
7. APS कहिँ किर। BS सग्गसोक्खु 9 P सक्नु। 10. APS किर कहिं II. P वहते । 12 A बंधजुत्ति | 13. A कम्मकंदु ।
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(8) 1. APS जी 2. B समत्तु लयउ। 3. B लयइय। 4. APचि पुच्छिउ ।
(8)
जीव अनादि निधन है, गुणवान है, सूक्ष्म है, अपने कर्म का कारक है । भोक्ता, शरीर परिणामी और कर्मरज से रहित होने पर ऊर्ध्वगतिवाला है।
कानों को सुखद लगनेवाले जिनवर के द्वारा कहे गये इन शब्दों को सुनकर गुणों से हर्षितमन बलभद्र और नारायण ने सम्यक्त्व ग्रहण कर लिया तथा दूसरे ( बलभद्र ) ने अरहन्त की परमशिक्षा जिन्नदीक्षा ग्रहण कर ली। दूसरे ने दया का परिपालन करनेवाले सुन्दर श्रावक व्रतों को ग्रहण किया। इसी बीच ऐरावत के समान गति लीलाबाली देवकी ने गणधर वरदत्त से पूछा- संयमशील से सुशोभित तथा चर्यामार्ग से आये