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महाकइपुग्फयंतविरयड महापुराण
[89.6.11
परिवडियवयपालणाईहिं
लक्खाई लिणि वरसावहिं। संताय तिरिय सुरवर असंख बजति" पडह मद्दल असंख" । हिं पइसइ लोऊ असेसु सरणु तहिं किं वणिजइ समवसरणु। "घत्ता जियकूरारिणा बसुपइहारिणा।
भी' सीरिणा णविवि मुरारिणा ॥6॥
दुवई-धम्पधम्मकम्मगइपुग्गलकालावासणामहं ।
पुच्छित किं पमाणु' परमागमि चउदहभूयगामहं ॥छ॥ कि खणविणासि किं णित्यु एक्कु किं देहत्थु वि कम्मेण मुक्कु। कि णिच्यणु चेयणसरूड किं चउभूयहं संजोयभूउ । कि णिग्गुणु णिक्कलु णिब्बियारि कि कम्महं कारउ कि अकारि । इसरवसेण कि रववसेण
संसरइ देव संसारि केण। परमाणुमेतु किं सव्यगामि अप्पउ केहन भणु भुक्णसामि । तं णिमणिवि णेमीसरिण' बुत्तु जइ खणविणासि अप्पड णिरुत्तु। तो कागद णितिय गेरुण परिसह साए विणिहिदव्यठाणु।
श्रेष्ठ श्राविकाएँ थीं। संख्यात तिर्वच एवं असंख्य सुरवर थे। असंख्य नगाड़े और मृदंग बज रहे थे। जहाँ सम्पूर्ण लोक आश्रय लेता है, उस समवसरण का क्या वर्णन किया जाए ? __ घत्ता-दुष्ट शत्रु को जीतनेवाले, पृथ्वी का हरण करनेवाले बलभद्र और कृष्ण ने नेमिनाथ को प्रणाम कर पूछा
धर्म, अधर्म, कर्म, गति, पुद्गल, काल, आकाश नामक द्रव्यों तथा चौदह भूतग्रामों (लोकों) का परमागम में क्या प्रमाण है ? क्या क्षणभंगुर है ? क्या नित्य है ? कौन देहस्थ होते हुए भी कर्ममुक्त हैं ? अवचेतन क्या है ? या इनका चेतन स्वरूप क्या है ? चार महाभूतों का संयोगरूप क्या है ? निर्गुण, निष्पाप और निर्विकार क्या हैं? क्या वह कर्मों का. कारक है या अकारक है ? ईश्वर के वशीभूत होने से या कर्म के कारण, किस कारण हे देव ! जीव संसार में भ्रमण करता है ? वह क्या परमाणु मात्र है अथवा क्या सर्वगामी है ? हे भुवनस्वामी ! बताइए, आत्मा का स्वरूप क्या है ?
यह सुनकर नेपीश्वर ने कहा-यदि निश्चय से आत्मा क्षणभंगुर है, तो वह रखे हुए धन को सौ वर्षों के बाद भी उसके स्थान को कैसे जान लेती है ? यदि वह नित्य है, तो उत्पत्ति और मृत्यु को कैसे जान
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