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________________ 81.16.12] महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु घत्ता - सावयवय धरिबि ता कालें कयमयणिग्गहु । रघु मघवंतसुउ सुरु हुन्छ तेत्यु" जि सूरम्पहु ॥15॥ ( 16 ) वणमालइ सुमुहें णिरु गिरीहु आयणिउ धम्मु जिनिंदसि' चिंतवइ सेट्ठि दुक्कियविरत्तु असहायहु आयहु विहलियासु सुयरई गेहिणि हउं कयकुकज्ज" हाकिं ण गइय हउं खंडखंडु इय जिंदत असणीयाई इह" भरहखेत्ति हरिवरिसविसइ णरणाहु पजणु सइ मिकंड 4 हुउ सुमुहुं पुत्तु तहि सीहकेउ सुहदेवि " सुहुप्पायण 19 गुणाल हूई परिणाविउ सीहचिंधु भुंजाविउ मुणिवरु धम्मसीहु । अप्पा' वि धूलिसमाणु दिठु । हा हित्तउं किं मई परकलत्तु । हा कि 'भई विरइउ गेहणासु । 'भत्तारदोहकारिणि अलज्ज" । हा पडउ मज्झु सिरि वज्जदंडु । कालेण ताई बिणि वि "मुयाई । भोयउरि "भोइभडभुत्तविसइ । तहु घरिणि णिरूविय "कामकंड 1 सालयपुरि" गरबइ वज्जचाउ" ! वणमाल ताहि सुय विज्जुमाल । जम्मंतरसंचियणेहबंधु”। [ 15 5 10 घत्ता - उसी समय, श्रावक व्रत धारण कर, अपने मन का निग्रह कर, राजा मघवन्त का पुत्र रघु उसी स्वर्ग में सूरप्रभ नामक देव हुआ । ( 16 ) वनमाला और सेठ सुमुख ने ( एक दिन ) अत्यन्त निरीह धर्मसिंह मुनिवर को आहार दिया और उन जिनवर के द्वारा कथित धर्म को सुनकर उसने अपने को धूल के समान देखा। खोटे काम से विरक्त सेठ सोचता है - हा ! मैंने दूसरे की स्त्री का अपहरण क्यों किया ? विह्वल और असहाय आये हुए इसका ( वीरदत्त का ) घर बर्बाद क्यों किया ? गृहिणी ( वनमाला) सोचती है-मैंने कुकर्म किया है। मैं अपने पति से द्रोह करनेवाली और निर्लज्ज हूँ। हा! मेरे टुकड़े-टुकड़े क्यों नहीं हो गये ? हा ! मेरे सिर पर वज्रदण्ड पड़े। इस प्रकार अपनी निन्दा करते हुए उसी समय वे दोनों बिजली गिरने से मर गये। इस भरतक्षेत्र के हरिवर्ष देश में, भोगी और सुभटों द्वारा भुक्त (विषयभोग के समान) भोगपुर नगर में प्रभंजन नाम का राजा था, और उसकी सती मृकण्ड नाम की स्त्री कामबाण कही जाती थी। सुमुख उससे सिंहकेतु नाम का पुत्र हुआ । सालयपुर (बस्वालय - उत्तरपुराण) का राजा बज्रचाप था। उसकी पत्नी शुभदेवी सुख देनेवाली और गुणवती थी । वनमाला वहाँ विद्युन्माला नाम की कन्या हुई। वह जन्मान्तर के संचित स्नेहबन्धवाले सिंहकेतु (पूर्वभव का सुमुख सेठ) से विवाही गयी । 12. 13 farg ( 16 ) 1. B जिणंद | 2. AP अप्पागाउं धूलि । 3. B "सुमाणु . A मई किह; P महं किं । 5. BP सुअरह G B कुकज्जु 17. H दोहि | 8. कारिणी। 9. B अलज्जु [US मथाई। 11. B इय 12. A भोइसंपत्तवितए। 13. B पहुंजभु 114. BS मिकडु। 15. BS कामकंडु। 16. A सायलपुरे । 17. AH चजवेड | IR. AP महएवं 19 A सुहुप्पा पणगुणाल 20: HS बिज्जमाल | 21. S 'सचिउ |
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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