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________________ 14] महाकइपुष्फयंतविरयल महापुराणु [81.14.10 10 t । दूसीलें परजायारएण वणिवइणा णिरु मायारएण। बारत-शार हि नितु "वाणिजहि पेसिउ वीरदत्तु । घत्ता-गउ सो इयरु तहि" आलिंगणु देंतु ण धक्कई । परहरवासियहु धणु धणिय ण कासु वि चुक्कई ॥14॥ (15) इज्झउ परदेसु परावयासु परवसु' जीविउं परदिण्णुः गासु। भूभंगभिउडिदरिसियभएण रज्जेण वि किं किर परकएण। सभुयज्जिएण' सुई वणहलेण णउ परदिपणे मेइणियलेण'। वर गिरिकुहरु वि मण्णमि सलग्घु णउ परधवलहरु पहामहाधु । कीति ताई णारीणराई उरयलथणयलविणिहियकराई। बहुकालहिं आएं मयपमत्तु वणिणा वणिवइ वणमालरत्तु । जाणिउ तावें अंतंतझीणु अपसिद्धउ णिद्धणु बलविहीणु।। बलवंतें रुद्धउ काई करइ अणुदेिणु चिंतंतु जि णवर मरइ। खलसंगें लग्गी तासु सिक्ख पोलिलु मुणि पणविवि लइय दिक्ख । चिंतिवि" किं महिलइ कि धणेण । मुउ अणसणेण णियमियमणेण । 10 संपुण्णकाउ सोहम्मि देउ चित्तंगउ णामें जाम जाउ। गयी। उसके मन में मानो काम की भयंकर भाले की नोंक लग गयी। कुशील और परस्त्री के लम्पट अत्यन्त मायावी सेठ ने धन दिया और वीरदत्त को बारह वर्ष के लिए वाणिज्य के लिए भेज दिया। घत्ता-वह चला गया। दूसरा (सेठ) वहाँ आलिंगन देते हुए नहीं थकता था। दूसरे के घर में रखा हुआ किसी का भी धन और धन्या (स्त्री) बचती नहीं है। (15) परदेश, परनिवास परवश जीवन और दूसरे के द्वारा दिये गये भोजन को आग लगे। भ्रूभंगोंवाली भृकुटियों से जिसमें भय दिखाया जाता है, ऐसे दूसरे के राज्य से क्या ? अपने बाहुओं से अर्जित धनफल में सुख है। दूसरे के द्वारा दिये गये धरणीतल में सुख नहीं है। मैं गिरिगुफा को श्रेष्ठ और श्लाघनीय मानता हूँ, लेकिन प्रभा से महनीय दूसरे का धवलगृह अच्छा नहीं। उरतल और स्तनतल पर हाथ रखते हुए वे दोनों स्त्री-पुरुष (सुमुख और वनमाला) क्रीडा करने लगे। बहुत समय के बाद आये हुए बणिक् वीरदत्त ने जान लिया कि मद से प्रमत्त सेठ वनमाला में अनुरक्त है। सन्ताप से अत्यन्त क्षीण अप्रसिद्ध निर्धन बलविहीन वह, बलवान् से अवरुद्ध होने पर क्या करे; प्रतिदिन विचार करता हुआ केवल मर रहा था। उसे एक दुष्ट की सीख लग गयी और उसने प्रोष्ठिल मुनि को प्रणाम कर दीक्षा ले ली। यह सोचते हुए कि स्त्री और धन से क्या ? अनशन और मन के संयम के साथ वह मर गया। वह सौधर्म स्वर्ग में सम्पूर्णकाय चित्रांग नाम का देव उत्पन्न हुआ। 12. B दूसेलें5 दूशीलें। 13. B "रयेण। 11. : वरसावहि। 15. B वाणिज्जहो। 16. B वीरपत्तु। 17. B तहिं। (15)1. S परयस । 2. BP "दिण्णमासु। 3. भुपज्जिएहि। 4. 5 मेणियलेण। 5. A मण्णथि । 6. AH काले ता ताचे अंतु खाणु; P अंतंतु खीण, 5 अंतंतु शीणु। 9. B अपसिखिछ। 10. H पुहिल 5 पोट्ठिल। 1. P चिंतए। कालहं। 7. B आयएं। 8. A
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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