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________________ 81.14.9] महाकापुष्फयंतविरपर महापुराणु णाणे परियाणइ लोयणाडि करमेत्तदेहु मणहरकिरीडि। णिवसइ विमाणि पप्फुल्लवत्तु सो होही 'जहिं तं भणमि गोत्तु । पत्ता-गोत्तम भणइ सुणि मगहाहिव लद्धपसंसहु । रिसहणाहकयह पच्छिमसंतइ हरिवंसह ||13॥ ( 14 ) इह दीवि भरहि वरवच्छदेसि कोसंबीपुरवरि जणणिवासि। मधवंतु राउ पिसुणयणतावि तहु वीयसोय णामेण देवि। रहु णामें गंदणु सुमुह सेट्टि कालिंगदेसि कमलाहदिट्टि। दंतउरह होता' वीरदत्त वणि वणमालामहं पोम्मवत्तु'। वाहहुं भइयइ णावइ कुरंगु आवउ अणाहु कयसत्थसंगु । कोसंबि पइउ 'सुमुहमवणि ठिउ जालगवक्खविसंतपवणि। सव्वई वित्तई रइरसरयाई अण्णहिं दिणि 'वणकीलहि गयाइं। वणमाल बाल सुमुहेण दिव लायण्णवंत रमणीवरिष्ठ। अहिलसिय सुसिय" तह देहवेल्लि मणि लग्गी भीसणमयणभल्लि । ग्राह्य पुद्गलों को ग्रहण करता है। ज्ञान से लोकनाड़ी को जानता है, एक हाथ प्रमाण शरीरवाला, और सुन्दर मुकुटवाला प्रफुल्ल-मुख वह विमान में निवास करता है। वह जहाँ जन्म लेगा, उसके कुल को कहता हूँ। घत्ता-गौतम मुनि कहते हैं-हे मगधराज, ऋषभनाथ द्वारा निर्मित प्रशंसा-प्राप्त हरिवंश की अन्तिम परम्परा सुनो। (ऋषभ जिन इक्ष्वाकुवंश के थे। कुरुवंश का प्रमुख सोमप्रभ था। उग्रवंश का कश्यप या मघवा, हरिवंश का प्रमुख हरिश्चन्द या हरिकान्त था तथा नाथवंश में अकम्पन या श्रीधर राजा)। इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के श्रेष्ठ वत्स देश में जननिवास से परिपूर्ण कौशाम्बी नगर वर में दुष्टों को सन्ताप देनेवाला मघवन्त नाम का राजा था। उसकी वीतशोका नाम की देवी (पत्नी) और रघु नाम का पुत्र था। वहीं सुमुख नाम का सेठ था। कलिंग देश से कमलों के समान नेत्रवाला कमलमुखी वीरदत्त वणिक् अपनी पत्नी वनमाला के साथ, दन्तपुर होता हुआ, व्याधों के भय से हरिण की भाँति, अनाथ होकर सार्थवाह के साथ आया। कौशाम्बी में प्रवेश कर, जालीदार झरोखों से जहाँ पवन प्रवाहित होता है ऐसे सुमुख सेठ के भवन में वह रहने लगा। रति-रस में रत नगर के सभी प्रसिद्ध लोग दूसरे दिन वनक्रीडा करने के लिए गये। सेठ सुमुख ने लावण्यवती श्रेष्ठ रमणी वनमाला को देखा। वह उसे चाहने लगा। उसकी देहलता सूखा 15. AIN मणहरू। 11. B जह। 15. P पत्थिवसंतए। (14)1.5"दच्छदेशे। 2. 5 सुमुह। 3. Bइंतज । 4. AP मरतुः । पेमवत्तुः K पोमयत्तु bul adds ap: पेम्म इति पाठे स्नेहवान् । 5. B पहए। GB सत्यु। 7. D सुमुह। B. A वि ताई: P वित्ताइ। 9. AP वणकीलागयाई। 10. AP लामण्णवण्ण। 11.5 सुसीय।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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