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महाकइपुप्फयंतविरयङ महापुराणु
[81.12.10
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तिह जीव विविहकिंकरसयाई जगि कासु वि होंति ण सासयाई। इय "चविवि सुदिविहि तणुरुहासु सई बद्ध पठ्ठ पहसियमुहासु। मिल्झाइयसिवपुत्मदिरासु
पणपिशु पाय सुमंदिरासु। घत्ता-दिहिपरियरसहिउँ णीसेसभूयमित्तत्तणु ॥ गिरिकंदरभवणु पडिवण्णउं तेण रिसित्तणु ॥12॥
(13) सुपइटें दुद्धरु चिण्णु चरिडं मणु' सत्तुमित्ति सरिसउं जि धरिउं। परवाइमयाई परिक्खियाई
एयारह अंगई सिक्खियाई। बिडवेसई केसई लुचियाई
गयगण्णई पुण्णइं संचियाइं। रउ विहुणिवि णिहणिवि जिणिवि कामु अविरुद्धउं बद्धउं अरुहणामु। अ सि आ उ सा ई अक्खर सरेवि गवपासें संणासें मरेवि। अहमिदु अणुत्तरि हुउ' जयंति 'हिमहंससुहारुहकिरणकति। तेत्तीसमहण्णवणियमियाउ |
तेत्तियहि जि पक्खहिं ससइ देउ। तेत्तियहि जि "सूरिपयासएहि। वोलीणहिं वरिससहासएहि । भुंजइ मणेण सुहुमाई जाई
मणगेज्झइं किर पोग्गलई ताई।
प्रकार लूका (उल्का) क्षय के स्थान को प्राप्त हुई, उसी प्रकार उसे भी क्षय को प्राप्त होना है। सैकड़ों तरह के अनुचर सदैव नहीं रहते। यह कहकर उसने स्वयं प्रहसित-मुख अपने सुदृष्टि नाम के पुत्र को पट्ट बाँध दिया और मोक्ष का ध्यान करनेवाले सुमन्दिर गुरु को प्रणाम कर, ___घत्ता-उसने ऋषित्व स्वीकार कर लिया-जो धैर्य के परिग्रह से युक्त है, जिसमें समस्त प्राणियों के प्रति मित्रता का भाव होता है और गिरिगुफाएँ ही जिसके घर होती हैं।
(13) सुप्रतिष्ठ ने ऐसा कठोर तप किया कि मन में शत्रु और मित्र को समान रूप से समझा। परवादी के मतों का उन्होंने परीक्षण किया। ग्यारह अंगों को सीखा। विडरूप में दिखनेवाले केशों को उखाड़ा और अगणित पुण्यों का संचय किया। पाप को नष्ट कर, काम को जीतकर और नष्ट कर अविरुद्ध अरहन्त नाम की प्रकृति का बन्ध किया। 'अ सि आ उ सा' आदि अक्षरों का स्मरण कर पापरहित संन्यास से मरकर, हिम, हंस और चन्द्रमा की किरणों के समान कान्तिवाले अनुत्तर विमान में उत्पन्न हुआ। तेतीस सागर प्रमाण आयु से नियमित, देव तेतीस पक्षों में साँस लेता, आचार्यों द्वारा प्रसारित उतने ही (33) हजार वर्षों में मन से
12. A सरेविः । भरेवि। 13. P"परियण' परियण' but corrects it io परियर ।
(13) 1. P मणि सतु पित्तु सरिसउं। 2. Pाइयपयाई। 5. A गवसण्णई। 4. B संचियामि। 5. APK विहिणेवि णिहिणेवि। 6. P हुओ। 7.8 हिमरासिसुहारयकिरण । 8. D तेत्तीयहिं धक्खहि; 9. 1 तेत्तीयहिं सूरि'; 10. A सूर। 11. P"पयासिएहिं। 12.5 "सहाएहिं।