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________________ ४9.5.81 महाकइपुप्फर्यतविरयङ पहापुराणु 1 167 परियाणिवि सिद्धहं पत्थि फासु णिज्जिर णेमि वसुविहु' वि फासु । अवइण्णियाहि सिसुचंदसियहि आसोयमासि पाडिवयदियहि । णक्खत्ति' चारुचित्ताहिहाणि पुब्वण्हयालि पयलंतमाणि। गुणभूमिर्तुगि तिहुयणपहाणि चड़ियउ तेरहमइ साहु ठाणि । उप्पण्णउ केवलु दालयदपि । उट्ठिया घंटारच" कप्पि कप्पि। घत्ता-चल्लियं आसणं हरिसुप्पिल्लिओ। जिणसंथुइमणो' इंदो चल्लिओ ॥4॥ दुवई-बहुमुहि बहुयदंति' बहुसयदलपत्तपणच्चियच्छरे। ___आरूढ करिदि अइरावई विलुलियकण्णचामरे ॥छ॥ दंड-विणयपणयसीसो सुरेसो गओ वंदिउँ' देवदेवो अताओं असाओ" महाणीलजीमूयवण्णो पसण्णो ॥१॥ गणहरसुरवंदो अमंदो अणिंदो जिणिंदो मइंदासणत्यो' महत्थो पसत्थो असत्या समस्या ससस्थः जपायो विसत्थो ॥2॥ __ बियलियरयभारो गहीरो सुवीरो' उयारी अमारो" अछेओ अभेओ अमेओ अमाओ अरोओ असोओ अजम्मो ॥५॥ यह जानकर कि सिद्धों में स्पर्श नहीं होता, नेमिनाथ ने आठ प्रकार के स्पर्शों को जीत लिया। शिशुचन्द्र से श्वेत आसोज माह के आने पर कृष्णपक्ष की प्रतिपदा के दिन सुन्दर चित्रा नक्षत्र में पूर्वाह्न काल बीतने पर, गुणस्थानभूमियों में श्रेष्ठ, त्रिभुवन में प्रधान, तेरहवें गुणस्थान में वह महामुनि आरूढ़ हो गये। उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। स्वर्ग में दर्प का दलन करनेवाली घण्टाध्वनि होने लगी। घत्ता-आसन हिलने लगा। हर्ष से प्रेरित हो जिन भगवान् की स्तुति का मन रचनेवाला इन्द्र चल पड़ा। जिसके दन्तरूपी अनेक कमलपत्रों पर अप्सराएँ नाच रही हैं, जिसके कानरूपी चमर हिल रहे हैं, ऐसे अनेक मुखों और दाँतोंवाले ऐरावत महागज पर इन्द्र आरूढ़ हो गया। विनय से प्रणतसिर देवेन्द्र गया और उसने देवदेव की वन्दना की-हे अताप, अशाप, मेघ के समान वर्णवाले, प्रसन्न, गणधरों और देवों के द्वारा वन्दनीय, अमन्द, अनिन्ध, जिनेन्द्र, सिंहासनस्थ, महार्थ, प्रशस्त, अशस्त्र, अवस्त्र और विशस्त्र; रजोभार से रहित, गम्भीर, सुवीर, उदार, कामरहित, अछेद्य और अभेद्य, अमापी, अरोग, अशोक और 6. BP में। 2. A वसुविहि। 8. A पडिवइय। 9. B तिहुवण'। 10. 5 उनिल । 11. BS घटारयु। 12. AS यालयं । 13. A "संधुर पणे। (5)1. P बहुभुयदंते। 2. A आरूढ करिद। 3. अरावण। 4. P यदिओ। 5. PS अलावो। 5. PS असावो।.। मईदासण" | R. A समस्या असत्यो समग्गो समत्यो। 9. ABS सुधीरो। 10. P आयायो।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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