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________________ 89.3.9] महाकइपुष्फबलविस्यउ महापुराण [ 165 कंकेल्लिलुलियदलवलवतंबु सहसंबयवणु फुल्लियकयंबु । गउ सई परिलुचिउ' केसभारु पडिवणउ ददु जिणवइविहारु। तरुणीयणु बोल्लइ रोवमाणु हा हा अत्यमियउ कुसुमबाणु। उप्पण्णहु एयह वक्गयाई हलि माइ तिण्णि बरिसह सयाई। सिवर्णदणु अज्जि' वि सुठ्ठ बालु रिसिधम्मह एहु ण होइ कालु। घत्ता-एण विमुक्किया रायमई सई। महुराहिवसुया' किह जीवेसई ॥2॥ 15 दुवई-चामरधवलछत्तसीहासणधरणिधणाई' पेच्छहे । णिरु' जरतणसमाई मणि मणिवि थिउ मुणिमग्गि दूसहे ॥छ॥ जिणु जम्म सहुं उप्पण्णबोहि हलि वण्णइ को एयहु समाहि । सावणपर्वसि सातकिरणभासि अवरण्हइ छट्टइ दिणि पयासि। चित्ताणक्खत्तइ चित्तु धरिवि छट्टोववासु णिभंतु करिचि। सहं रायसहासें हासहारि जायउ जहुत्तचारित्तधारि। माणवमणमइलणधतभाणु संजमसंपण्णचउत्थणाणु। अच्चंतवीरतवतावतविउ बलएववासुएवेहि णविउ । पिंडहु कारणि णिवाइ णि? अण्णहिं दिणि दारावइ पइर्छ। गये। स्वयं उन्होंने अपना केशभार उखाड़ लिया और दृढ़ता के साथ जिनपति के विहार को स्वीकार कर लिया। रोती हुई तरुणियों कहती हैं-हा हा !! कामदेव का अस्त हो गया है। हे माँ ! अभी इन्हें जन्म लिये हुए कुल तीन सौ वर्ष बीते हैं, शिवा का पुत्र आज भी बालक है, मुनिधर्म स्वीकार करने का उनका यह समय नहीं है। घत्ता-इन्होंने राजमती सखी को छोड़ दिया है। मथुरापति की वह राजपुत्री अब किस प्रकार जीवित रहेगी ? वह चमर, धवल छत्र, सिंहासन, धरती और धनादि को मन में जीर्ण तिनके के समान समझकर दुःसह मुनिमार्ग में स्थित हो गये। जिन को जन्म के समय से ही ज्ञान प्राप्त था। हे सखी ! उनकी समाधि का वर्णन कौन कर सकता है. ? चन्द्रकिरण से प्रकाशित (शुक्लपक्ष में) सावन माह का प्रवेश होने पर छठे दिन अपराह्न में चित्रा नक्षत्र में अपने चित्त को (अपने में) धारण कर निर्धान्त तीन दिन का उपवास (तेला) कर, हास का हरण कर, एक हजार राजाओं के साथ, वह यथोक्त चारित्र को धारण करनेवाले बन गये। (जिन्होंने दीक्षा ग्रहण कर ली) मानव-मन के मैलरूपी ध्वान्त के लिए सूर्य के समान, तथा संयम से सम्पन्न चतुर्थ ज्ञान प्राप्त कर, अत्यन्त वीर तप का तपश्चरण कर, बलभद्र और वासुदेव द्वारा प्रणम्य, शरीर के लिए 13. "वयल | 14.5 "कलंबु। 15. ABPS आलुंचिउ। 16. अथिमियउ। 17. Bअज। 11. B सुद्ध। 19. B उग्मसेगसुज in second hand. (3) 1. B"सिंहासण12.0 पिच्छहो । 3. पिछउ जरतणाई मणि पणिपवि। 4.A संपत": B संपुष्णT.A "धीर धीरु" | P ग्यासुएथाहि ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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